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२॥ इस रीतिसे सांख्यमतमे संपूर्ण पंचविशंति तत्व है. सांख्यमतमे ईश्वरको नहीं मानते है. किंतु प्रधान ही पुरुषके भोगार्थ विषयाकार परिणाम पावे है और पुरुषके मोक्षार्थभी प्रधानही बुद्धिमे विवेकरूपसें परिणाम पावे है. __ ३ ॥ वास्तवसे असंगपुरुषमे बंधमोक्ष दोनो नही. तथापि में असग है इस ज्ञानसे विना अपन स्वरूपमे बुद्धि के धर्म ज्ञान,सुखदुःख,रागद्वेषादिकोंक मानकरके बंधकू प्राप्त होवे है तथा कर्तृत्वभोक्तृत्वकों प्राप्त होते है और जब अपनेकू रागद्वेषवाली बुद्धिसे मै असंग हूं ऐसा ज्ञान जिसकों होवे तिसकीही मुक्ति होव है दूसरेकी नहि. तिस कारणते ही सांख्यमतमे नाना आत्मा मानेहै.॥इतिसांख्यमतवर्णनं॥
४॥सोसांख्यका मत समीचीन नहि, वेदविरोधी होनेसें. काहेते जो वेदमे 'एकमेवाद्वितीयं ब्रह्मेति' 'द्वितीयाद्वैजयं भवतीति'एसे एक ब्रह्म और
तते भय कथन कीयाहे और बुद्धिमे नानापणा कर्तृत्व भोक्तत्व बंधमोक्ष मानकरके पुरुषको असंग मानकरके फिर आत्मा नाना है एसा मानना निष्फल है इस गतिस सांग्यमत अंगीकार करना योग्य नही है. ॥ इति द्वितीय कमल समाप्त ॥
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