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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७) इस चांडालकी पानीबिनादीनावस्थातथा शोकमोद परिश्रमग्लानी है सा संपूर्ण हे, ईश्वर हमारे जलमात्र समर्पणले निवृत्तिकरो ॥११॥एसे कहकर जल. मात्रभी तिसको समर्पण किया ॥१२॥ एसे कृपालु धीरात्मा महाराज रंतिदेवको सर्वरूपसे अर्थात् ब्राह्मण शूद्र श्वानसमेत जो आयाथा तथा जल पीनेवाला चांडाल इन सर्व रूपोंसे अंतर्यामीने स्वस्वरूपसे दर्शनदेकरके महाराजरंतिदेवको कृतार्थ कीया १३ ४॥ हे सौम्य एसे पुरुषोत्तमदी चतुष्टयसाधनसंपन्न मोक्षाधिकारी होते है एसे पुरुष मोक्ष न चाहे तोबी बलात्कारसे मोक्षमिले है. एसेपुरुषोंके लीये वासिष्ठ मे वसिष्ठजी कहते है, जो फूलमर्दनमे नेत्रोंके निमीलनमे तो श्रम होवे है परंतु पूर्वोक्तपुरुषोंकेलीये मोक्षमे यत्न वा विलंब लागतानही. एसे पुरुष गुरु उपदेशसें “तत्वमसि' महावाक्यसें अपने सहित सर्वको वासुदेवजानकरके जीवन्मुक्ति तथाविदेहमोक्षको प्राप्तभये. फिर जन्ममरणमें नही आवता है शिष्य उवाच ॥ हे प्रभो जब रंतिदेवराजाको सर्ववासुदेव निश्चयभया तब भेदव्यवहार कैसे सिद्ध होवेगा? अरु सर्वजगत् भेदव्यवहारसे व्याप्त देखनेमे आवे है यांते सर्व एकवासुदेव कैसे निश्चयहोवे ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020885
Book TitleVedant Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVigyananand Pandit
PublisherSarasvati Chapkhanu
Publication Year1837
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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