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(७) उतरं ॥ ' हे सुजन ! लोकप्रसिद्ध धर्मार्थकाममोक्षरूप चतुष्टयपुरुषार्थोमें मोक्ष ही परंपरासे उत्तम है. तिसमोक्षका उत्पादक वेदांत है तिसवेदांत करके प्रतिपाद्य ब्रह्मज्ञान तुमने अवश्य आश्रयकरणा चाहीये. जो ज्ञान ब्रह्मात्माकी एकता प्रतिपादन करे है तथा श्रुतिभी एसैही कहेहै. एकब्रह्मको जानकरके मृत्युसे अभय होताहै दुसरा कोईभी मोक्षका मार्ग नही. . ॥ और दूसरे शास्त्र केतका प्रतिपादक होनेते
और द्वैतदृष्टि भयका कारण है एसे श्रुतिवाक्यते भी दूसरे शास्त्र तृणसमान त्याग करणा. इस कारण ते मै तुमको सर्वशास्त्रोका प्रतिपादन विस्तारसे कहता हूं. ॥इति प्रथम कमलम्. मंगलग्रंथ भूमिका रूपं अलं.॥ १॥७॥ अथ द्वितीयकमलमे सांख्यमत खंडन ॥६॥
इस सांख्यमतमे कारणकार्यभावसे रहित अ. संग पुरुषविशेष एकरूप सो एकतत्त्व है. और सत्वरजस्तमो गुणोंके समान विभागवाली जो प्र. धान है सो दूसरा तत्त्व है. सो कैसा प्रधान है जो कारणरूप है कार्यरूप नही है. महत्तत्त्वअहंकार पंचतन्मात्रा ये सप्त कारण तथा कार्यरूप है. एसे सांख्यवादी माने है. पंचीकृत पंचमहाभूत, दश इंद्रिय मन ये षोडश कार्यरूप है कारण नही.
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