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॥ पारिभाषिकः ॥
५१
विद्यार्थी उदात्त के स्थान में अनुदास बोले तो अध्यापक उसको शासन करता है कि तू अन्यथा क्यों बोलता है । सो जो उदात्तादिमें भेद नहीं होता तो शासन भी नहीं बन सकता । और यह भी दृष्टान्त है कि एकजल शीत, उष्ण औरखारी आदि भेदक गुणों के होनेसे भिनर होजाता है इत्यादि अनेक प्रयोजन हैं ॥ ८५ ॥
इस पूर्वोक्त विषय में ऐसे भी दृष्टान्त मिलते हैं कि एक देवदतं बालक युवा आदि अवस्था गुणे और मुण्ड जटिल आदि गुणों से वही बना रहता है कोई भिन्न नहीं होजाता । ब्रूस से यह भी आया कि गुण अभेदक हैं और (यासुट् परस्मैपदेषूदातो ङिच्च) इस सूत्र में यासुट् को उदात्त न कहते किन्तु उस को उदास हो पढ़ देते तो उदात्तादि गुणों के भिन्न २ होने से उदान्तके पढ़ने में अनुदात होहो नहीं सकता फिर उदात्तग्रहण व्यर्थ हुआ इसलिये यह परिभाषा है । ९६ - प्रभेदका गुणाः ॥ श्र० १ । १ । १ ।।
उदात्तादि गुण अभेदक होते हैं अर्थात् गुणो के स्वरूप को कुछ भी नहीं बदल सकते । इसीलिये (अस्थिदधि०) इत्यादि सूत्रों में उदात्त वा अनुदात्त पढ़ा है जो उदात्तादि शब्दों से उदास नहीं पढ़ते तो अभेदक होने से विशेष गुणोका ज्ञान नहीं होता इस से उदात्तादि शब्दों का पढ़ना सार्थक होगया । इन गुणों के अभेदक पक्ष में दोघों का तपर पढ़ने का द्वितीय समाधान है ( श्रदेच्) यहां तो आकारके तपर पढ़ने का यही प्रयोजन है कि तकार से परे ऐ औ तपर माने जावे तो (महा ओजाः, महौजाः) यहां चार मात्रिक स्थानो के स्थान में चार मात्राओं का आदेश भी प्राप्त होता है सो नहो किन्तु हिमात्रिक हो ( ए, ऐ, ओ, श्रौं) आदेश होवें इत्यादि अनेक प्रयोजन हैं इन दोनों में गुणों का अभेदकपक्ष ही बलवान् है ॥ ८६ ॥
(सर्वादीनि सर्वनामानि ) इस सूत्र में सर्वनामपद में णत्वनिषेध निपातन किया है सो उस को सूत्र में चरितार्थ हो जाने से लौकिकप्रयोगविषय में सर्वनाम शब्द को णत्व होना चाहिये इसलिये यह परिभाषा है |
९७ - बाधकान्येव हि निपातनानि ॥ ०१ | १| २७ ॥
जिस प्राप्त कार्य का विधान वा प्राप्त का निषेध निपातन से करदिया हो वह सर्वथा बाधक होजाता है फिर वह वैसा ही प्रयोगकाल में भी रहेगा । इस से सर्वनाम आदि शब्दों में णत्वनिषेध आदि कार्य सिद्ध होजाते हैं ॥ ७॥
(स्यन्त्स्यति) इस स्यन्दू धातु के प्रयोग में इट् का विकल्प अन्तरङ्ग और निषेध बहिरङ्ग है सो जो अन्तरङ्गकार्य करने में बहिरङ्ग प्रसिद्ध माना जावे तो परस्मैपद में भी इटका विकल्प होना चाहिये । इस सन्देह को निवृत्ति के लिये यह परिभाषा है |
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