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। पारिभाषिकः ॥
कार्य कहा है वहां वाक्यस्थ क्रिया जब प्रत्येक अवयव के साथ सम्बन्ध करलेती है तब उस को पूर्णवाक्य कहते हैं । जैसे किसी ने कहा कि (देवदत्तयज्ञदत्तविष्णुमित्रा भोज्यन्ताम् यद्यपि यहां यह नहीं कहा कि देवदत्त, यज्ञदत्त और विष्णमित्र को पृथक २ भोजन कराओ तथापि भोजन क्रिया प्रत्येक के साथ सम्बन्ध रखती है इसी प्रकार यहां आ, ऐ, औ की दिसंज्ञा पृथक कही है इसौ से प्रत्येकवर्ण के साथ वृद्धि का सम्बन्ध पृथक २ रहता है ऐसे ही गुण आदि संज्ञा भी प्रत्येक की होती है । ८३ ॥ ___अब इस पूर्वोक्त परिभाषा से यह दोष आया कि जो (हलोऽनन्तराः संयोगः) यहाँ प्रत्येक वर्ण को संयोगसंज्ञा रहे तो ( निर्यायात्, निर्वायात् ) यहां या,वा धात को संयोगादि मान कर (वान्यस्य संयोगादेः) इस सूत्र से एकारादेश होना चाहिये इत्यादि अनेक दोष आवेंगे। इसलिये यह परिभाषा है । ९४-समुदाय वाक्यपरिसमाप्तिः ॥ अ० १।। ७॥
कहीं ऐसा भी होता है कि समुदाय में वाक्य को परिसमाप्ति होवे अर्थात् वाक्यस्थ क्रिया का केवल समुदाय के साथ सम्बन्ध रहे। और प्रत्येक अवयव के साथ पृथक २ संबन्ध न होवे जैसे राजा ने आज्ञा किई कि (गर्गाःपतन्दण्ड्यन्ताम) यहां गर्गो पर सौ रुपये दण्ड कहा तो उन में प्रत्येक पर सौर दण्ड कि या जावे वा समुदाय पर तो जैसे समुदाय पर एक दण्ड होताहै वैसे ही समुदित हलों की संयोगसंज्ञा होती है । इत्यादि अनेक प्रयोजन हैं।८४॥
(डिरादैच) सूत्र में आ,ऐ, औ, वन तीन दोघं वर्गों को वृद्धिसंज्ञा की है फिर आकार तपर क्यों पढ़ा क्योंकि सवर्णग्रहणपरिभाषा से अक्षरसमाम्नाय का ही अण् सवर्णग्राहक है परन्तु जो अक्षरसमाम्नाय में इस्ख पढ़ते हैं उन्हीं का ग्रंक्षण होगा दी? का नहीं फिर दीर्घ से सवर्णग्रहण की प्राप्ति ही नहीं और तपरकरण का यही प्रयोजन होता है कि तपर से भिन्न कालिक सवर्णों का ग्रहण न हो। दूस के समाधान के लिये यह परिभाषा है ॥ ९५-भेदका उदात्तादयः॥ ०१।१।१॥
निस वर्ण के साथ जो उदातादिगुण लगताहै वह उसको स्वभावसे भिन्न कर देता परन्तु कालभेद नहीं होता दोघं उदात्त,दीर्घ अनुदात्त,दीर्घ स्वरित इन में काल का तो भेद नहीं परन्तु उच्चत्व, नीचत्व, समत्वादिका भेदहै सो जो आकार को तपर न पढ़ते तोभी अभेदकों का ग्रहण होहो जाता फिर तपर से यही प्रयोजन है कि भिन्नधर्मवाले तात्कालिक उदात्तादि का भी ग्रहण होजावे इस लिये आकार में तपरकरण सार्थक हुआ तथा अन्यत्रभी दोघवणे को तपरपढ़ने का यही प्रयोजन है।और लोक में भी उदात्तादिका भेद दौखपड़ता है जैसे कोई
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