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।पारिभाषिकः । जैसे ( ब्राह्मणव, ब्राह्मणौ च ब्राह्मणो, वत्सश्च वत्मा च वत्सौ ) यहा स्त्री वाचक शब्द के साथ पुरुषवाची शब्द एकशेष रह जाता है वैसे ( ब्रामणवत्मा च ब्राह्मणोवत्सश्च ) यहां भी एकशेष होना चाहिये इसलिये यह परिभाषा है। ८५-प्रधानाप्रधानयोः प्रधाने कार्यसम्प्रत्ययः॥ .
जहां प्रधान और अप्रधान दोनों में कार्य प्राप्त हों वहां प्रधान में कार्य होना निश्चित रहे अप्रधान में नहीं (ब्राह्मणवत्सा च ब्राह्मणोवत्स च) यहां स्त्रीत्व
और पुंस्त्व स्वार्थ में अप्रधान और स्वस्वामिसम्बन्ध में प्रधान हैं इसलिये एकशेष नहीं होता इत्यादि । तथा लोक में भी और किसी ने किसी से पूछा कि यह कौन जाता है उसने उत्तर दिया कि राजा यद्यपि राजा के साथ सेनादि सब थे तथापि प्रधान राजा का ग्रहण होता और दो मनुष्यों का देवदत्त नाम हो तो उन में जो प्रधान होता है उसी से व्यवहार किया जाता है ॥ ८५ ॥ • स्वस्त्रादिगण में माट शब्द पढ़ा है उस से डोप प्रत्यय का निषेध किया है सो जननीवाचक है और परिमाण अर्थात् तोलन करने वाली सामान्य स्त्री को भी मार कहते हैं सा दोनों का निषेध हो वा किसी एक का इस सन्देह की निवृत्ति के लिये यह परिभाषा है । ८६-अवयवप्रसिद्धः समुदायप्रसिद्धिर्बलीयसी ॥
अवयव को प्रसिद्धि से समुदाय की प्रसिद्धि बलवान होती है। अवयव की प्रवृत्ति थोड़े अंश में और समुदाय की प्रवृत्ति बहुत अंश में होती है। इस कारण जननीवाचक मात्र शब्द के रूढि होने से अवयव मान कर स्वस्रादिगण से डीप का निषेध होजाता है और परिमाणकर्तवाचक माट शब्द के यौगिक होने से समुदायवाची मान कर स्वस्त्रादि गण से डीप का निषेध नहीं होता अर्थात परिमाणवाचक मार पुरुष होतो (माता,मातारी,मातारः) और स्त्री होतो(मात्री, मान्यौ,मात्यः ) ऐसे प्रयोग होंगे इस परिभाषा के इत्यादि प्रयोजन है ॥ ८६ ॥
(अचि विभाषा ) इस सूत्र में गृ धातु के रेफ को लकारादेश होता है । सो जहां क एट वाचौ गल गब्द है वहां भी लत्वका विकल्पहोतो गर शब्दभी कण्ठवाचक होजावे सो नियम से विरुद्ध है क्योंकि गर शब्द केवल विष का वाची और गल शब्द कण्ठवाची है. इन दोनों के अर्थ में लव के विकल्प से ध्यभिचार होजाना चाहिये इस के समाधान के लिये यह परिभाषा है।
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