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# पारिभाषिकः
७३ - विभाषा समासान्तो भवति ॥ अ०
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६ । २ । १९७ ॥
समासान्त सब प्रत्यय विकल्प करके होते हैं तो प्रतिपूर्वक राजन् शब्दसेजिस पक्ष में समासान्त टच् न हुआ वहां (प्रतिराजा ) में भी अन्तोदान्त होजावे इस लिये राजन् शब्द का अंखादिगण में पढ़ना सार्थक हो गया । तथा ( द्वित्रिभ्यां पाइन्) इस सूत्र से भी बहुव्रीहिसमास में हित्रिपूर्वक मूर्ख शब्दको अन्तोदात स्वर कहा है सो यहां भी हित्रिपूर्वक मूर्ख से जब समासान्त ष प्रत्ययविधान है तो प्रत्ययवर से अन्तोदात्त सिद्ध हो है फिर मूर्ख शब्द का ग्रहण इसीलिये है कि समासान्त प्रत्यय विकल्प होते हैं सो जिस पक्ष में समासान्त नहीं होता ( मूडी, त्रिमूर्द्धा) यहां भी ग्रन्तोदात्त खर हो जावे । इत्यादि प्रयोजनोंके लिये यह परिभाषा है ॥ ७३ ॥
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( शतानि सहस्राणि ) यहां जब सर्वनामस्थान शि को मान के नुम् श्रागम होता है तब ( शतन्, सह खन्) शब्दों के नकारान्त हो जाने से ( ष्णान्ता षट् सूत्र से षट्संज्ञा होजावे तो( षड्भ्यो लुक् ) सूत्र से शिका लुक् होना चाहिये इत्यादि समाधान के लिये यह परिभाषा है |
७१- सन्निपातलक्षणो विधिरनिमित्तं तद्विघातस्य ॥ ० १|१|३९॥
जो एक के श्राश्रय से दूसरे का सम्बन्ध होना है वह सन्निपात कहाता है उसी सन्निपातसंबन्ध का जो निमित्त हो ऐसा जो विधि कार्य है वह उस अपने निमित्तके बिगाड़नेको अनिमित्त अर्थात् असमर्थ होता है । यहां शत, सहस्रशब्द से जस आकर शि आदेश हुआ अब शि के आश्रय से शत शब्द को नुम् हो कर शत नान्त हुआ अब जिस के आश्रय से शत को नान्तत्व गुण मिला उस नान्तगुण से उसी का विघात करे यह ठीक नहीं इस से ( शतानि सहस्राणि श्रादि में शि का लुक नहीं होता तथा ( दूयेष, उवोप) यहां एल् प्रत्यय के आश्रय से ( दूष, उष) धातु का गुण होता है गुण होने से बजादि मान कर आम् प्राप्त है और
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इस परिभाषा का नागेश भट्ट ने ( समासान्तविधिरनित्य ) ऐसा लिखा है सेो महाभाष्य में विरुद्ध है क्योंकि अनित्य चीरविभाषा में बहुत भेद है अनित्य उस का कहते हैं कि जो कभी हो और कभी नही और विकल्प के दो पक्ष सदा बने रहते हैं और इस परिभाषा को भूमिका में (सुपथी नगरी ) यह महाभाष्य का उदाहरण करके रक्खा है कि पथिन् शब्द से ( इम: स्त्रियाम्) सूत्र से समासान्त कप् नहीं हुआ तो समा सान्त अनित्य हैं । सेा यह नहीं विचारा कि (न पूजनात् ) सूव से ( सुपथो नगरी) आदि सब में पूजनवाची समास से समासान्त का निषेध सिद्ध है जब कप् प्राप्त हो नहीं तो समासान्तविधि के अनित्य होने में (सुपथ नगरी ) यह प्रयोग कब समर्थ हो सकता है । देखो व्याकरण में नागेश को कितनी बड़ी भूल है ।
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