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पारिभाषिकः ।
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पाम् के हो जाने से उस से परे लुक् कहा है तो उसी गन् का विघात हो कि जिस के आश्रय से इस उष जादि हुए हैं इत्यादि बस के अनेक प्रयोजन है। और लोक के साथ भी इस परिभाषा का सम्बन्ध है कि जो पुरुष जिस धनाढ्य के धन से स्वयं धनवान हुआ हो वह उसो धन से धनाव्य का विघात कर यह बहुत विरुद्ध है अर्थात् ऐसा कभी न होना चाहिये कि जिस के संग से जो सामथ्र्य प्राप्त हो उस सामथ्र्य से उसी को नष्ट करे ॥ ७४ ॥
(पञ्चन्द्राण्यो देवता अस्य स पञ्चेन्द्रः स्थालौपाकः ) पञ्चन्द्राणी शब्द से देवता अर्थ में विहित अण् प्रत्यय का (हिंगोलुगनपत्ये ) सूत्र से लक होकर ( लतादि. तलुकिसूत्र से ईकार स्त्रीप्रत्यय का भी लुक हो जाता है। तब डोष के संयोग से आया जो प्रानुक् आगम उस का लुक विधान किसी सूत्र से नहीं किया सो उस आनुक का श्रवण हो तो (पञ्चेन्द्रः ) आदि शब्द सिद्ध नहीं हो सके इसलिये यह परिभाषा है। ७५-संनियोगशिष्टानामन्यतराऽभावे उभयोरप्यभावः ॥ ० ६।४ । १५३ ॥
जिस कार्य के होने में एक साथ दो का नियम हुआ हो उन में से जम एकका अभाव होजावे तब दूसरे का अपने पाप प्रभाव होजाताहै। जैसा किसी कार्य का नियम है कि देवदत्त यज्ञदत्तदोनों मिलके इस काम को करें सो नो देवदत्त न रहे तो यन्नदत्त उस कार्य से स्वयं मित्त होजाता है। इसी प्रकार यहां भी इन्द्र शब्द से स्त्रीत्व रूप कार्य को विवक्षा को डोष और आनुक दोने पूरी करते हैं। सो नब डोष का प्रभाव होता है तब प्रामुक भी यहां से निकृत्त होजाता है । तथा ( पञ्चाग्नाय्यो देवता प्रस्य स पञ्चाग्निः) । यहां स्त्री प्रत्यय के लुक होने के पशात ऐकार पागम को भी निवृत्ति होनाती है। इस परिभाषा का ज्ञापक यह है कि (विल्यकादिभ्यश छस्म लुक ) इस सूत्र में विल्यकादि से परे छ प्रत्यय का लुक कहा है और उसो छ प्रत्यय के संयोग से विल्यादि शब्दों को कुक होता है। सो विल्वादि शब्दों से छ का लुक कहदेते तो कुक आगम को भी निहात्ति हो जाती। इसलिये विल्वादि शब्दों को कुक आगम के सहित पढ़ उन से परे छ प्रत्ययमान का लुक कहा है। इस से सिद्ध हुआ कि आगमी को निवृत्ति में पागम को नियत्ति होजाती है। तब कृत कुगागम विल्वकादि से छ प्रत्यय का लुक कहा है इत्यादि अनेक प्रयोजन हैं । ७५ ॥
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