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पारिभाषिकः ।
२-कार्यकालं संज्ञापरिभाषम् ॥ ३-यथोद्देशं संज्ञापरिभाषम् ॥ १० ॥ १ । १ । १५ ॥ (कार्यस्य कालः कार्यकालः कार्यकालः कालोऽस्य तत् कार्यकालम, संज्ञा च परिभाषाच तत्संज्ञापरिभाषम्, उद्देशमनतिक्रम्य यथोद्देशम ) संज्ञा और परिभाषा कासमय वही है जो कार्य करने का काल होता है उसी समय उन को उपस्थिति होती है । जैसे दीपक एक स्थान पर रक्खा हुआ सब घर को प्रकाशित करता है वैसे परिभाषा भी एकदेश में स्थित हो कर सब शास्त्र के विषयों को प्रकाशित करती है इस में प्रमाण (परिभाषा पुनरेकदेशस्था सती कत्स्नं शास्त्रमभिज्वलयति प्रदीपवत्, यथा प्रदीपःसुप्रज्वलितःसवेश्माभिज्वलयति ) महाभाष्य० २।१।१॥ और यथोद्देश पक्ष से प्रयोजन यह है कि जिस विषय पर जिस परिभाषा का उच्चारण किया हो वह उस का उल्लंघन न करे अर्थात् उस विषय के अनुकूल उस की प्रवृत्ति होवे । दून दोनों पक्षों में भेद यह है कि कालपक्ष को परिभाषा किसी को दृष्टि में असिद्ध नहीं मानी जाती । और यथोद्देश पक्ष को परिभाषा असिद्ध प्रकरण में नहीं लगती ॥ २ ॥ ३ ॥
(दाधाघवदाप ) दूस सूत्र में अदाप कहने से दाप लवने धातु का निषेध हो सकता है फिर देप गोधने धातु को घुसंज्ञा हो जावे तो(अवदातं मुखम् यहां अमिष्ट दत् आदेश प्राप्त है इसीलिये दैप धातु की संज्ञा इष्ट नहीं है इत्यादि प्रयोजनों के लिये यह परिभाषा की गई है ॥
४-अनेकान्ता अनुबन्धाः ॥ अ० ॥ १।१ । २०॥ प, ञ,ङ,क इत्यादि अनुबन्ध जिन धातु आदि के साथ युक्त होते हैं उन के . एकान्त अर्थात् अवयव नहीं किन्तु वे अनुबन्ध उन धातु आदि से पृथक हैं। इस से यह सिबहुआ कि“दैप धातु को एजन्त मान करआकारादेश किये पीछे दाप मानकर इसी घुसंज्ञा का निषेध होता है उसी से (अवदातं मुखम् यहां दोष नहीं आता॥४॥ ___ अब (अनेकाल शिसर्वस्य) इस सूत्र से (अनेकाल) और (शित्) आदेश संपूर्णके स्थान में होते हैं (इदम इश, अष्टाभ्य और यहां (इंश) औरोश भी शकार के सहित अनेकाल हैं फिर अनुबन्ध! * के एकान्तपक्ष में शित ग्रहण ज्ञापक है इस से यह परिभाषा निकली।
* अमुबन्धा में एकान्त और अनेकान्त दोने पक्ष माने जाते हैं से। अनेकान्त पक्ष में परिमाषा का प्रयोजन दिखा दिया और एकान्तपन इसलिये मानते हैं कि अनेकान्त पक्ष में क जिस का इस गया ही वह कित् नहीं हो सकता क्योकि कित् शब्द में बहुव्रीहि समास से अन्य पदार्थ प्रत्यय के साथ ककार अनुब
का मुख्य सम्बन्ध नहीं घटता और एकान्त पक्ष में घट जाता है और अनेकान्त पक्ष में शकार अनुबन्ध से शित् अनेकाल नहीं हो सकता फिर एकान्तपक्ष के लिये ही अगली ५/६ । ७ तोनां परिभाषा हैं |
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