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॥ पारिभाषिकः ॥ पूर्वस्य दोघाऽणः ) इस सूत्र में (अण) प्रत्याहार पूर्व कार से लेना वा पर से यह संदेह है ( उत्सर ) इस में निस्संदेह पूर्व णकार से लेना चाहिये क्योंकि जो पर णकार से लिया जाये तो इस सूत्र में ( अग) का ग्रहण करना व्यर्थ है क्योंकि (अचथ) इस सूत्र से हव दीर्घ प्लत अच हो के स्थान में होते हैं इस से (अच को उपस्थिति होहो जाती फिर (अण) ग्रहण का यही प्रयोजन है कि इत्यादि सूत्रों में पूर्व णकार हो से लिया जावे ( प्रश्न) और (अणदित्सवर्णस्य चाप्रत्ययः )इस चुत्र में (अण) प्रत्याहार पूर्व णकार से वा पर णकार से लेना चाहिये (उ०)निस्संदेह परणकार से (अण) प्रत्याहार का ग्रहण है क्योंकि (उऋत्) इससूत्र में ऋकार तपर इसीलिये पढ़ा है कि ( अचीकृतत् ) इत्यादि प्रयोगों में ऋकार को हस्व ऋकार हो आदेश हो अर्थात् सवर्णग्रहण ( अणुदित्. ) परिभाषा सूत्र से हस्व का सब। ी दीर्घन हो जावे । जो पूर्व णकार से अण ग्रहण होता तो पूर्व अण में ऋकार के होने से ऋकार को सवर्ण ग्रहण प्राप्त ही नहीं फिर तपर क्यों पढ़ते । इस से स्पष्ट हुआ कि ( अणदित्० ) इस सूत्र में पर णकार से और इसी एक सूत्र को छोड़ के अन्यत्र सब सूत्रों में पूर्व णकार से अण् ग्रहण है (प्र०) और (इग कोः) इत्यादि जिनर सूत्रों में इण त्याहार पढ़ा है,वहार पूर्व वा पर णकार से ग्रहण करना चाहिये (उ०) यहां सर्वत्र निस्सन्देह पर णकार से इंण समझना चाहिये
क्योंकि पूर्व से इण प्रत्याहार में(इ, उ) दो ही वर्ण आते हैं सेा नहीं बन दो वा | से कार्य लिया है वहां (वोः) ऐसा इ उ को विभक्ति के साथ सन्धि करके पढ़ा है | यहां पढ़ते तो कुछ गौरव नहीं था किन्तु आधी मात्रा का लाघव हो या फिर दूण प्रत्याहार के न पढ़ने से निश्चय हुआ कि सर्वत्र पर णकार से चूण प्रत्याहार लिया जाता है । अन्यत्र भी जहां कहीं शिष्ट वचन में सन्देह पड़े वहां व्याख्यान से विशेष करके सत्य विषय का निश्चय कर लेना चाहिये किन्तु उस वचन को व्यर्थ जान के नहीं छोड़ देना चाहिये और सन्दिग्ध लौकिक व्यवहारों का भी विशेष व्याख्यान से निर्णय किया जाता है ॥१॥
___ (सार्वधातुकाईधातुकयोः) यह गुणकार्य होने का काल है यहां(अलोन्त्यस्य,
को गुणग्रही) उन दो परिभाषाओं को विधिसूत्र के साथ परिभाषाबुद्धि से एकवाक्यता हो इस लिये कार्यकाल परिभाषापक्ष, और जब ( हयवरट, हल) यहां दो हकारों का उपदेश इत्यादि विषयों में सन्देह पड़े तब उस विषय के साथ सामान्य विषयकबुद्धि से परिभाषारूप व्याख्या की एकवाक्यता हो । सलिये यबोहेश पक्ष है । इस से ये दोनों परिभाषा की गई हैं।
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