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सौवरः॥
७४-नामंत्रिते समानाधिकरणे सामान्यवचनम् ॥
___ अ०॥८।१।७३॥ सामान्यवचन समानाधिकरण आमंत्रित पद पर होतो पूर्व जो प्रामंत्रित. पद है वह अविद्यमानवत न हो जैसे । अग्ने वतपते । अग्ने ग्रहपते । पूर्थिवि देवयजनि । अर्थात पद से परे निघात आदि कार्य हो जाव । समानाधिकरण ग्रहण इसलिये है कि पूर्व सूत्र के विषय में यह सूत्र न लगे । सामान्यवधनग्रहण का प्रयोजन यह है कि अन्य देवि सरस्वति ईई का व्ये विहव्ये' । यहां पर्यायवाची शब्दों में न हो । ७४ ॥ ७५--विभाषितं विशेषवचने बहुवचनम् ॥ ५० ॥ ८।१।७४॥
विशेषवचन सामानाधिकरण आमंत्रित पद परे हो तो पूर्व जो आमंत्रितपद है वह विकल्प करके अविद्यमानवत हो । जैसे । देवा ब्रह्माणः । देवा' ब्रह्माणः । ब्राह्मणा वैयाकरणाः । ब्राह्मणा वैयाकरणाः । यहां अविद्यमानवत् पक्ष में दोनों पद के स्वर और विद्यमानवत् पक्ष में उत्तरपद निघात हो जाता है । इत्यादि। विशेषवचनग्रहण इसलिये है कि । माणव क जटि लक । यहां विकल्प न हो।७५॥ ७६ --युष्मदस्मदोःषष्ठीचतुर्थीहितीयास्थयोर्वान्नावौ ॥
अ०॥८।१।२०॥ षष्ठी चतुर्थों और द्वितीया विभक्ति के सह वर्तमान अपादादि में पद से परे जो युष्मद् अस्मद् पद उन को क्रम से वाम् और नौ आदेश हों और वे सब अनु. दात्त हों। जैसे षष्ठीस्थ-ग्रामो वां स्वम् ! जन पदो नौ स्वम् । चतुर्थीस्थ । ग्रामोवां दीयते। न न पदो नौदीयते । द्वितीयास्थ-मा ण वको वां पश्यति । मा ण वको नौ' पश्यति । इत्यादि । इस सूत्र में स्थग्रहण इसलिये है कि । दृष्टो मया युष्मत्पुत्रः । यहां षष्ठी का लुक् होजाने से आदेश और अनुदात्त नहीं होता ॥ ७ ॥
७७-बहुवचनस्य वस्नसौ ॥ अ०॥८।१।२१॥
षष्ठी, चतुर्थी और हितीया विभक्ति के सह वर्तमान अपादादि में पद से पर बहुवचनान्त जो युष्मद् अस्मद् पद उन को क्रम से वस् और मस् प्रादेश हों तथा वेसब अनुदात्त हो। जैसे । नमो वः पितरः । नमो वो देवाः । मा ना. बधीः ।मा नो गो षु मा नो अश्वेषु रीरिषः । शत्र': इत्यादि ॥ ७॥ .. ७८-तेमयावेकवचनस्य ॥ अ०॥८।१।२२॥ अपादादि में वर्तमान पद से परे जो एकवचनान्त युष्मद् अस्मद् पद उम को
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