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सौवरः ॥ १५-नामन्यतरस्याम् ॥ अ० ॥६।१।१७७॥ मतुप प्रत्यय के पो नो इख अङ्गा उस से परे षष्ठी का बहुवचन नाम विभक्ति होतो वह विकल्प करके उदात्त हो । जैसे । अग्नीनाम् । अग्नीनाम् । वा युनाम्। वायूनाम्। ति मृणाम्। तिहणाम्। च त मृणाम्। च तणाम् । यहां हत्व ग्रहण इस लिये है कि । कु मारोणम् । कि शोरोणाम् । इत्यादि में विभक्ति उदात्त न हो ॥ ४५ ॥
१६-ड्याश्छन्दसि बहुलम् ॥ अ० ॥ ६ । १ । १७८॥ जो बस से परे नाम होतो वह बहुल कर के उदात्त हो अर्थात् कहीं हो और कहीं न हो। देव से नाना म भि भ ल तीनाम् । यहां होगई तथा । नदोनों पार जयन्तीमा मरुतः । यहां विभक्ति उदात्त नहीं होती ॥ ४६॥
४७-तित्वरितम् ॥ अ० ॥ ६ ॥ १।१८५॥ जो तित् प्रत्यय है वह स्वरित हो । यह आद्यदात्तप्रत्ययवर का अपवाद है। यत्-चि कोयम् । जि होयम्। चि चौध्यम् । तु ष्ट्रध्यम्। ण्यत् - कार्यम् । हार्यम् । इत्यादि । ४७ ॥ ... ४८-तास्यनुदात्तेङिददुपदेशाल्ल सार्वधातुकमनुदात्त--
मह न्विङोः ॥ अ०॥६।१।१८६ ॥ तास् प्रत्यय, अनुदासेत् धातु, ङित् धातु, और अदुपदेश धातु इनसे पर जो सार्वधातुक संजक लकार के स्थान में तिप आदि प्रत्यय वे अनुदात्त हो परन्तु यह कार्य हनुङ और धातु को छोड़ के होवे क्योंकि ये दोनों ङित् हैं। जैसे तास. प्रत्यय-कर्ता । कर्तारौ' । कर्तारः । अनुदात्तत् । आस्ते । पासाते । पासते । जित् । शेते । सूते । दोधोते' । वेवोते । अदुपदेश,पठतः। पठन्ति । पर्चतः । पर्च fत तासि प्रादि से परे ग्रहण इसलिये है कि । स नुतः । सुन्वन्ति । यहाँ महो सार्वधातुक ग्रह प. इसलिये है कि । सुषुवे । स षुवाते' । यहां न हो और हना तथा इनका निषेध इसलिये है कि हनुते । अधोते । यहां अनुदात्त नहो ॥४८॥
१९--लिति ॥ अ० ॥६।१। १९३ ॥ लकार जिस का इत् गयाहो उस प्रत्यय से पूर्व उदात्त हो जैसे। चि कोषकः। जिदीक्षकः। यहां चिकीर्ष जिहोष धातु से गवुल हुप्राहे । भौ रि किविधम्। यहाँ
तक्षित का विधल प्रत्यय है। ऐषु कारिभताः । और यहां तड़ित का भताल प्रत्यय | हुआ है इत्यादि ।
५०--आमंत्रितस्य च ॥ प्र०॥६।१।१९८॥ बोप्रामंत्रित अर्थात् सम्बोधन में प्रथमाविभक त्यन्त शब्द है। उन को पाद्य.
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