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भूमिका ।
अकारादि सूची को देख के खोज लेना चाहिये। निर्वचन तो सब शब्दों का कर दिया है परन्तु वे धातुगणानुबन्ध और अर्थ के सहित यहां नहीं लिखे हैं क्योंकि ग्रन्थ बहुत बढ़ जाता इस लिये धातु के प्रयोग से गण अनुबन्ध तथा उस के पर्याय शब्द से धातु के अर्थ का बोध कर लेना चाहिये । संस्कृत में वृत्ति बनाने का यही प्रयोजन है कि जो लोग पठनपाठन व्यवस्था के पहिले पुस्तकों को पढ़ें गे उन के लिये संस्कृत कुछ कठिन नहीं होगा और संस्कृत भी सरल ही बनाया है। कई शब्दों के अर्थ इति शब्द लगा कर भाषा में भी खोल दिये हैं ।
इति भूमिका
स्थान महाराणा जी का उदय पुर । माघ कृष्णा १. संवत् १९३६
६ दयानन्द सरस्वती )
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