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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्वचेष्टितेऽधिवासनप्रकरणम्। (४२७ ) अब्दायननुत मासपक्षदिनानि कार्येष्ववधौ विदध्यात् ॥ हीनावधिन भवत्यसत्यः सर्वोऽपि लोके शकुनो गृहीतः॥ ॥१४॥ एवंविधं भावि न वेति चित्ते निवेश्य कार्य भषणं विमुंचेत् ॥ संभक्ष्य पिंडं स्थिरतां गतस्य चेष्टादिकं तस्य निरूपणीयम् ॥ १५॥ इति वसंतराजशाकुनेश्वचेष्टितेऽधिवासनप्रकरणं प्रथमम्॥१॥ ॥ टीका ॥ मंत्रवरैः अस्य अभ्यर्चनं कार्यम् ॥ १३ ॥ ॐ मंडलाय स्वाहा इत्यनेन चंदनाले. पनम् । ॐ भल्लूकाय स्वाहा इत्यनेनाक्षतप्रदानम् । ॐ कपिलाय स्वाहा इत्यनेन पुष्पप्रदानम्।ॐयक्षाय स्वाहा इत्यनेन धूपो देयः।ॐविनयवते नमः इत्यनेन दीपप्रदा. नम् । ॐ ऋतुकालाभिगामिने स्वाहा इत्यनेन फलादिढौकनम् । ॐ बलिभोजनाय स्वाहा इत्यनेन नैवेद्यप्रदानम् । ॐ स्वामिभक्ताय स्वाहा इत्यनेनार्यम् । कृतज्ञ एहिएहिरात्रिजागरण एहि एहि दिव्यज्ञानिन् एहि एहि प्रत्यक्षवचन एहि एहि जिह्वाजल्प एहि पहि स्वल्पप्रिय एहि एहि षड्गुण एहि एहि शुनकोत्तम एहि एहि इदमयं गृहाणगृहाण इमं बलिं गृहाणगृहाण सत्यं ब्रूहि ब्रूहि स्वाहाइति बलिनिवेदनमंत्रः ॥ १३ ॥ अब्देति ॥अब्दायनज्न उत मासपक्षदिनानि स्वकीयकार्येषु अवधौ मर्यादायां विदध्यात्प्रकर्यात् । पुरुषः शकुनविलोकक इति शेषः येन कारणेन लोके सर्वोऽपि गृहीतः शकुनो हीनावधिः सनसत्यो भवति ॥ १४ ॥ एवमिति ॥ ॥भाषा ॥ या करके पुष्प देनो. ॐ यक्षाय स्वाहा या. करके धूप देनो. ॐ विनयवते नमः या करके दीपक जोडनो. ॐ ऋतुकालाभिगामिने स्वाहा याकरके फलादिक देनो ॐ बलिभोजनाय स्वाहा या करके नैवद्य देनो. ॐ स्वामिभक्ताय स्वाहा या करके अर्घ्य देनो. कृतज्ञ एहि एहि रात्रि जागरण एहि एहि दिव्यज्ञानिन् एहि एहि प्रत्यक्षवचन एहि एहि जिद्वाजल्प एहि एहि स्वल्पप्रिय एहि एहि षड्गुण एहि एहि शुनकोत्तम एहि एहि इदमर्य गृहाणगृहाण इम, बलिं गृहाणगृहाण सत्यं ब्रूहि ब्रूहि स्वाहा इति बलिदाननिवेदनमंत्रः । या मंत्रकरके बलिदान करणों ॥ १३ ॥ अब्दति ॥ शकुन देखबेवालो पुरुष अपने कामें वर्षकी वा अयनकी वा ऋतुकी वा महीना पक्षादिन इनकी अवधि करले अर्थात् मेरोये कार्य इतने वर्षौ या दिनमें होय गो ऐसो करले या कारणसूं संपूर्ण शकुन लोकमें अवधि करे विना मिथ्या हो जांय हैं ॥ १४ ॥ एवमिति ॥ ऐसे अपने कार्यकं मनमें For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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