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(३४८) वसंतराजशाकुने-त्रयोदशी वर्गः।। वारिवह्निपवनावनिशब्दान्वामतो यदि करोति नरस्य ॥ कन्यकाधनसुखादिकलाभं तद्ददाति विदधात्यथ विनम् ॥ ॥ ८९ ॥ पिंगलावदनजानि यदि स्युरिवाय्ववनिवह्निरुतानि ॥ विग्रहायुवतिधान्यधनादि प्राप्यते नरवरेण तदाशु ॥९०॥ वारिवातदहनावनिवाचः पिंगला वदति चेतमगत्या॥ वित्तकीर्तिविजयाँल्लभते तद्विग्रहेण महतीं च समृदिम् ॥ ९१॥ तेजोधरावारिसमीरशब्दा भवंति पिंगस्य यदिक्रमेण ॥ ध्रुवं तदानी सुहृदागमेन प्रधानयोषिद्विषयः कलिः स्यात् ॥ ९२॥
॥ टीका॥
निश्चयेन यात्रा सिद्धिमेति पुनरागमनं च भवति ॥ ८८॥ वारीति ॥ यदि गच्छतो नरस्य वारिवहिपवनावनिशब्दान्करोति तदा कन्यकाधनसुखादिकलाभं ददाति अथ वित्रं विदधाति ॥८९।।पिंगलेति ॥वारिवायबवनिवह्निरुतानि पिंगलावदनजानि यदि स्युः तदा विग्रहानरवरेण आशु शीघ्रं युवतिधान्यधनादि प्राप्यते ॥९॥ ॥ वारीति ।। क्रमगत्या वारिवातदहनावनिवाचः पगला वदति चेत्तदा वित्तीति विजयाँल्लभते विग्रहेण महती समृद्धि लभते इत्यथः॥९१॥ तेजइति ॥ चेक्रमण पिंगलस्य तेजोधरावारिसमीरशब्दा भवंति । तदाना ध्रुवं मुहृदागमेन प्रधानयो
॥ भाषा॥
उच्चारण करै तो राजा प्रसन्न होय. निश्चय यात्रामें सिद्धि होय और फिर आगमन होय ॥८॥ वारीति।जो पक्षी गमनकरवेवाले पुरुषकं जल,अग्नि, पवन, पृथ्वी इनके शब्द वामभागते करै तो कन्याधनसुखादिकनको लाभ देवै, या पीछे विघ्नकर ॥८९॥ पिंगलेति ॥ पिंगलाके मुखते निकसे हुये जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि ये शब्द होंय तो विग्रहते मनुष्यकू शीघ्रही स्त्री धान्यधनादिक प्राप्त होय ॥९० ॥ वारीति ॥ जो क्रमगति करके जल, वात, अग्नि, पृथ्वी इनके शब्द पिंगलाकरे तो वित्त, कीर्ति, विजय इने प्राप्त होय और विग्रह करके महानू समृद्धि होय. ॥ ९१ ॥ तेज इति ।। जो क्रमकरके पिंगलके तेज, पृथ्वी, जल, पवन ये शब्द होय तो निश्चय सुहृदको आगमन प्रधान स्त्रीकरके सहित कलह होय ॥ ९२ ॥
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