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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३४२) वसंतराजशाकुने त्रयोदशो वर्गः । भौमानिनादात्खरवः परश्चेत्सुखं तदा प्रागसुखं च पश्चात् ।। क्रमं परित्यज्य यदा भवेतां दुःखं तदादौ तदनु प्रमोदः ॥ ॥६५॥ आप्यस्य पश्चायदि तैजसः स्यात्कृत्वा फलं तन्नियतं निहति ॥ आदौ तु जाते यदपीह तैजसे सिद्धं पालं तदहति प्रसह्य ॥६६॥ प्रागंबुनादोऽनिलजस्ततश्चेत्समीहितं तत्सहसा निहति ॥ भयं क्षयं च द्रविणस्य तज्ज्ञास्तयोर्विपर्यासतया वदति ॥ ६७॥ अंभोरवादुत्तरमांबरश्चेत्सुहृत्कलौ तन्मरणं प्रदिष्टम् ॥ विपर्ययात्तौ रिपुसंपराये शरीरनाशं कुरुतो नराणाम् ॥ ६८ ॥ ॥ टीका ॥ प्राग्धानिः पुरतोऽर्थलाभः स्यात् ॥ ६४ ॥ भौमादिति ॥ भौमानिनादात खरवः आकाशजो रवः परश्चेत्स्यात्तदा सुखं पश्चादसुखं दुःखं स्यात् यदा क्रमं परित्यज्य तो भवेतां तदा आदौ दुःखं तदनु पश्चात्प्रमोदः स्यात् ॥ ६५ ॥ आप्यस्येति ।। यदि आप्यस्य उदकजातस्य पश्चात्तैजसः स्यात्तदा फलं कृत्वा नियतं तनिहति । आदौ तु तैजसे जाते इह सिदं फलं प्रसह्य तदहति ॥ ६६ ॥प्रागिति ॥ चेत्यागंबुनादः अनिलजः पश्चात्तत्समीहितमिच्छितं सहसा निहति । तयोः विपर्यासतया तज्ज्ञाः शकुनज्ञाः भयं द्रविणस्य क्षयं वदति ॥ ६७ ।। अंभोरवादिति ॥ अंभो. रवादुत्तरं आंवरः चेत्स्यात् तदा सुहृत्कलौ तन्मरणं प्रदिष्टं विपर्ययात्तौ रिपुसंपराये ॥ भाषा॥ लाभ करै ।। ६४ ॥ भौमादिति ॥ भौमशब्दते आकाशशब्द परे हाय तो पहले सुख होय, पीछे असुख होय, और विपरीत होय तो पहले दुःख होय, पीछे सच होय ॥६५॥ ॥आप्यस्यति ।। आप्यशब्दके पीछे जो तैजस शब्द होय तो पर्वफलकरके फिर वा नाशकर और जो पहले तैजसशब्द होय पीछे आप्यशब्द होय तो सिद्धहुये फलक बलात्कार करके नाशक॥६६॥प्रागिति।।पहले जल नाद होय, और पीछे पश्न नाद होय, तो हुये कार्य सहसा नाश करदे, जो पहले पवननाद होय पीछे जलनाद होय तो भय और द्रव्यको नाश करै ।। ६७! अंभेरवादिति ॥ पहले जल शब्द होय पीछे आकाश शब्द होय तो सुहृदजनन कलह और वाको मरण होय. और पहले आकाश शब्द होष पछि जल For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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