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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिंगलारुते द्विसंयोगफलप्रकरणम् । शब्दौ कमात्पावकवातजातौ विघ्नं विधत्तोऽभिमतार्थसिद्धये।। तयोश्च जाते सति वैपरीत्ये मृत्युभयं वा भवति प्रभूतम् ॥६९॥ क्रमेण यद्वा क्रमवैपरीत्यात्स्यातां ध्वनीतैजसनाभसौ चेत् ॥ तदावगच्छेनियमेन विद्धानत्युग्ररूपं कलहं भयं च ।। ७०॥ प्राग्वातजोऽनंतरमांवरश्चेच्छब्दस्तथा वित्तविनाशमाहुः ॥ विपर्ययेण वनयोरवश्यं रणे नराणां मरणं वदंति ॥७१ ॥ हुताशनाकाशसमीरशब्दाः शब्दांतरादुत्तरमुद्भवंति ॥ एकाकिनो वा यदि तत्प्रदिष्टाः शुभाय कार्येषु शुभावहेषु ॥७२॥ ॥ टीका ॥ युद्धे नराणां शरीरनाशं कुरुतः ॥६८॥ शब्दाविति॥पावकवातजातौ शब्दो क्रमा द्विघ्नं विधत्तः अभिमतार्थसिद्धयै च स्याताम् तयोश्च वैपरीत्ये जाते सति प्रभूतं प्रचुरत रंभयं मृत्युश्च भवति ।। ६९॥ क्रमेणेति ॥ क्रमेणवैरीत्यादा तैजसनाभसौ ध्वनी भवतश्चेत्तदाअत्युग्ररूपं कलहो भयं च नियमेन भवतीति विद्वानवगच्छेज्जानीयात्॥ ॥७० ॥ प्रागिति । प्राग्वातजः अनंतरमांबरश्चेत्स्यात्तदा वित्तविनाशमाहुः । अनयोविपर्ययेणावश्यं रणे नराणां मरणं वदंति ॥ ७१ ॥ हुताशनेति ॥ हुताशनाकाशसमीरशब्दाः शब्दांतरादुत्तरमुद्भवंति यदि एकाकिनो वा अवंति तदा ॥ भाषा॥ शब्द होय तो संग्राममें मनुष्यनका नाश करै ।। ६८ ॥ शब्दाविति ॥ पहले अग्नि शब्द होय पीछे पवनशब्द होय तो विघ्न करे और चांछितसिद्धि करें जो ये शब्द त्रिपरीत होय तो मृत्यु और बहुत भय करें ॥ ६९ ॥ क्रमेणेति ॥ जो तेजस और नामस ये दोनों शब्द क्रमकरके होंय वा विपरीत करके होंय तो निश्चय करके अति उग्ररूप कलह और भय प्राप्त होय ॥ ७० ॥ प्रागिति ॥ पहले पवनते हुयो शब्द होय पीछे अकाशको शब्द होय तो वित्तको नाश करै, जो इनको विपरीतकरके शब्द होय तो अवश्य मनुष्यनको मरण करै ॥ ७१ ॥ हुताशनाकाशेति ॥ अग्नि, आकाश, पवन ये तीनो शन्द और कोई शब्दांतरसं उत्तर होय वा इकलेई होय तो शुभ कार्यनमें शुभके For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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