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· पिंगलारुतेऽधिवासनप्रकरणम् । ( ३२५) वृक्षं च तं चर्चितमर्चितं च प्रवेष्टयेत्पाडुरवस्त्रसूत्रैः ॥ यथावदभ्यर्चनतोषिताय पूजां समस्तां गुरवे प्रदद्यात् ॥१६॥ आराध्य देवीं विधिनेदृशेन प्रयोजनं स्वं विनिवेद्य तस्यै॥ पृष्ठे प्रदीप्तां ककुभं विधाय वीक्षेत तचेष्टितमेकचित्तः॥१७॥ बद्धांजलिर्भूमिनिविष्टजानुः प्रणम्य भक्त्या शिरसा समस्तान्॥आवर्तयन्मन्त्रमथात्मगेहं व्रजेत्स्मरान्पिंगालकांमनुप्यः॥ १८॥ भोजयेदथ गुडाज्यपायसैः श्रद्धया कतिपयाः कुमारिकाः॥आत्मनोऽपि विदधीत भोजनं तद्गुरुस्वजनबंधुभिः समम् ॥ १९॥शयीत पश्चाद्विजनें रजन्यां यामत्रयं यावदथ प्रबुध्यात् ॥ स्वप्नं स्मरेद्यद्भवतीह लब्धं तत्सत्यमाहुः शकुनागमज्ञाः ॥२०॥
॥ टीका ॥
॥१६॥१७॥१८॥१९॥ शयोतेति ॥ पश्चादजन्यां यामत्रयं यावत् विजने शयीत।अथ प्रबुध्य स्वमं स्मरेद्यल्लब्धं भवति यतः शकुनागमज्ञाः तत्सत्यमाहुः॥ २०॥
॥ भाषा ॥ भयंकर रूप जाको ऐसी चंडी जो पिंगलिका ताको स्मरण कर या प्रकार पिंगलिकाको पूजन करके ॥ १५ ॥ वृक्षमिति ॥ चंदनकर चर्चित अर्चन कियो गयो पृक्ष ताकू पिंगलिकाकू श्वतवस्त्रसूत्र पहराय देनो या प्रकार अर्चन करकै प्रसन्न हुये तुरुनके अर्थ पूजा निवेदन करै ॥ १६ ॥ आराध्येति ॥ या विधिकर देवीको आराधन करके अपनो प्रयोजन निवेदन कर दीप्त दिशाकू पीठ विछाडी करके एकाग्रचित्त होय फिर वाकी चेष्टाकू देखै ॥ १७ ॥ वद्धांजलिरिति ॥ मनुष्य हाथ जोड पृथ्वीमें जानू टेक मस्तक नमायकर भक्तिपूर्वक नमस्कार करके मंत्र बोलतो हुयो पिंगलिका स्मरण करत अपन घरकू गमन करै ॥ १८ ॥ भोजयेदिति ॥ घर आयकरके गुड, घृत, खांड, क्षीर इनकरके श्रद्धापूर्वक कन्याकुमारी भोजन करावै फिर आपभी गुरु, स्वजन बंधु इनकरके सहित भोजन करै ॥ १९ ॥ शयीतेति ॥ ता पीछ रात्रिमें निर्जन स्थानमें तीन प्रहर रात्रिपर्यंत शयन करे फिर प्रहरके तडके उठ करके स्वप्नकू स्मरण करै जो प्राप्त होय ताय शकुन जानवे
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