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(३२४) वसंतराजशाकुने-त्रयोदशो वर्गः।
रात्रिचारिणि ब्रह्मपुत्रि सत्यमेतद्रूहि मे स्वाहा । इत्याह्वानमंत्रः । ॐ क्रोह्रीं चिलिचिलि वौषट् । इति पूजाजपहोममंत्रः। ॐ सिद्धिचामुण्डे कृष्णपिंगले स्वाहा । ॐ नमोभगवति कालरात्रि मंत्रमृत महेश्वरि चामुंडे प्रजापालिनि योगेश्वरि आगच्छागच्छ एत्येहि तिष्ठतिष्ठ । ॐ ह्रीं चिलिचिलि शब्दाय स्वाहा ॥
॥ इत्यधिवासनमन्त्रः ॥ गुरूपदेशात्समवाप्य मंत्रंशतं जपेत्तस्य कृतावधानः॥ होमो दशांशेन च मन्त्रजाप्यात्कृतो विधेयो मधुना समिद्भिः ॥ ॥ १२॥ उदुंबराश्वत्थपलाशशाखादूर्वाप्रकाण्डाग्रदलोद्भवाभिः ॥ हुत्वा समिद्भिर्मधुना घृतेन ध्यानं विदध्याद्विहितावधानः ॥ १३ ॥शवाधिरूढां नृकपालहस्तां शूलायुधां भूतिसितांगयष्टिम् ॥ उलूकचिह्नां नरमुंडमालां निर्मासदेहां रुधिरं पिबन्तीम् ॥ १४ ॥असृग्वसाचर्चितकृष्णकायां करीन्द्रपञ्चाननचर्मवस्त्राम् ॥ बिभीतकस्थामतिभीमरूपां चंडी स्मरेपिंगलिकां प्रपूज्य ॥ १५॥
॥ टीका ॥ गुरूपदेशादित्यादि भोजयेदित्यन्तम् अष्टलोकाः पूर्व व्याख्यातत्त्वान्न व्याख्यायन्ते ॥ १२॥ १३ ॥ १४ ॥ १५ ॥
॥ भाषा ॥ गुरुपदेशादिति ॥ गुरुनके उपदेशते मंत्र प्राप्त होय फिर सावधान होयकर मंत्रको जप यथाशक्तिकर फिरदशांश हवन करें ॥ १२ ॥ उदुंबरेति ॥ गूलर, पीपल, पलाश इनकी शाखा और दूर्वा समिधासहित घृत इनको दशांशहवन करके फिर एकाग्र चित्त हाय ध्यान करे ॥ १३ ॥ शवाधिरूढामिति ॥ शवके ऊपर बैठी हुई मनुष्यको कपाल जाके हाथमें त्रिशूल जाके आयुध भस्मकरके श्वेत अंग जाको घघको चिह्न जाके नरमुंडकी माला धारण करे मांस रहित देह जाको रुधिर पान कर रही ॥ १४ ॥ अमृग्वसेति ॥ रुधिर सहित मांसकरके चर्चित कृष्ण देह जाको श्रेष्ठ हाथी और सिंह इनके चर्मको वस्त्र जाको बहेडेके वृक्षपै स्थित अति
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