SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 335
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काकरते स्थानस्थितप्रकरणम् । (२९९) प्रश्ने कृते रोगविनाशबुद्धया हंत्याशु रोगं सुरवः प्रदीप्ते ॥ शांतप्रदेशे करटश्चिरेण रम्यारवो रोगमपाकरोति ॥१२१॥ प्रश्ने शुभे शांतदिगाश्रयस्थःशांतस्वरो वस्तु शुभं दधानः।। यो वायसस्तं शुभदं वदंति तव्यत्यये व्यत्ययहेतुरुक्तः ॥ ॥ १२२ ॥ विरौति कुम्भे मणिकेऽथ वायसः स गर्भवत्याः सुतजन्महेतुः ॥ उड्डीयते कंटकिनी च शाखामादाय राजागमनाय काकः॥ १२३ ॥ अन्नाज्यविष्ठापिशितादिभिर्यः पूर्णाननोऽभीष्टफलप्रदोऽसौ ॥ मन्त्रादिसिद्धयै वणिजादिलाभे शस्तो विवाहादिविधौ च काकः ॥ १२४ ॥ ॥ टीका ॥ पीते वस्तुनि रुक्मस्प शुक्क रजतस्य कार्यासमये चैलस्य विनाशलाभौ स्याताम् ॥ ॥ १२०॥ प्रश्ने इति ॥ रोगविनाशबुद्ध्या प्रश्ने कृते प्रदीप्ते सुरवः आशु रोग हंति शांतप्रदेशे रम्यारंवः रम्यश्चासौ आरवश्च स्थिरेण रोगमपाकरोति ॥ १२१ ॥ प्रश्ने इति ॥ शुभे प्रश्ने शांतदिगाश्रयस्थः शांतस्वरः शुभं वस्तु दधानः यो वायसः तं शुभदं वदंति तद्यत्ययो व्यत्ययहेतुरुक्तः अशुभं ददातीत्यर्थः॥१२२ ॥ विरौतीति ॥ कुंभे मणिके बृहत्प्रमाणे जलभाजनविशेषे यदा काकः विरौति तदा गर्भवत्याः सुतजन्महेतुर्भवति कंटकिनी च शाखामादाय उड्डीयते काकः तदा राजागमनाय स्यात् ॥ १२३ ॥ अन्न इति ॥ अन्नाज्यविष्ठापिशितादिभिर्यः पूर्णाननः असौ अ ॥भाषा॥ लाभ होय. और कार्पासमय वस्तु होय तो वस्त्रको लाभ होय ॥ १२० ॥ प्रश्ने इति ॥ रोगविनाश होयबेकी बुद्धिकरके प्रश्न कियो होय और जो काक प्रदीप्त दिशामें सुन्दरशब्द करतो होय तो शीघ्र रोग दूरकरै जो शांतदेशमें शुभ बोलतो होय तो देरमें रोगकं दूर करै है ॥ १२१ ॥ प्रश्ने इति ॥ शुभप्रश्न कियो होय जो काक शांतदिशामें बैठो होय और शांतस्वर करतो होय और शुभवस्तु धारण करे होय तो शुभको देवेवारो जाननो ॥ ॥ १२२ ॥ विरौतीति ॥ कुंभपै और बहुत प्रमाणको जलपात्र कोठी हंडाबडे इनपै बैठकर बोले तो गर्भवतीके सुत जन्मको देबेवारो जाननो, और जो कांटेकी शाखाकू लेक. रके उडजाय तो राजाके आगमनके अर्थ जाननो ॥ १२३ ॥ अन्न इति ॥ अन्न, घृत, विष्टा, मांस इत्यादिकनकरके जो भरो हुयो मुख होय तो ये अभीष्ट वांछितफल देवे. For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy