________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( २९८ )
वसंतराजशाकुने - द्वादशो वर्गः ।
छायामु लाभं भुवि भूमिलाभं विघ्नं जले ग्रावणि कार्यनाशम् ॥ करोति काको विरुवन्नरस्य प्रस्थायिनः स्थानगतस्य वापि ॥ ११७ ॥ द्वारप्रदेशे रुधिरानुलिप्तो विरौति काकः शिशुनाशनाय ॥ पक्षौ विधुन्वन्विरुवन्विरूक्षं शान्ते प्रदीप्ते च भवेन शस्तः ॥ ११८ ॥ भ्रमन्नथोध्यौं प्रविधाय पक्षौ काकः कुनादः प्रलयं करोति ॥ क्रुद्धोऽधिरूढः करटांतरं च रोगेण मृत्युं कुरुते नराणाम् ||११९|| द्रव्ये हृते चापहृते खगेन विनाशलाभावपि तादृशस्य | रुक्मस्य पीते रजतस्य शुक्ले चैलस्य कार्पासमये भवेताम् ॥१२०॥
॥ टीका ॥ स्थितस्यापि जनस्य दिवसत्रयेण प्रभूतं विपुलं दुःखं स्यात् ॥ ११६ ॥ छायेति ॥ प्रस्थायिनः स्थानस्थितस्प वापि नरस्य काकः छायासु विरुवल्लाभं भुवि विरुवन्भू मिलाभं जले विरुवन्विनं ग्रावणि विरुवन्कार्यनाशं करोति ॥ ११७ ॥ द्वार इति ॥ रुधिराप्तिः काको द्वारमदेशे यदा विरौति तदा स शिशुनाशनाय स्यात पक्षी विधुन्वन् विरूक्षं विरुवन्काकः शांते प्रदीप्ते च दिग्विभागे शस्तो न भवेत् ॥११८॥ भ्रमन्निति ॥ पक्षौ ऊद्धौं प्रविधाय काकः कुनादः भ्रमन्प्रलयं करोति तथा क्रुद्धः सन्करटांतरमधिरूढश्चेन्नराणां रोगेण मृत्युं करोति ॥ ११९॥ द्रव्य इति ॥ खगेन हते द्रव्ये अपहृते त्यक्ते च सति तादृशस्य वस्तुनः विनाशलाभावपि भवेताम
॥ भाषा ॥
॥ ११६ ॥ छायेति ॥ गमनकर्ताकूं वा स्थानमें बैठो होय ताकूँ जो काक छाया में शब्द करे तो लाभ करें. और पृथ्वी में बोले तो भूमिको लाभ करें. जलमें करें तो विघ्न होय. और पाषाणपे बैठकरके बोले तो कार्यको नाश करे ॥ ११७ ॥ द्वार इति ॥ जो करके लिप्त होय द्वारमें जो बोलै तो बालकके नाशके अर्थ होय. और कंपायमान करत रूखो बोले शांतदिशा में वा दीप्तदिशामें तो शुभ नहीं ॥
११८ ॥
॥ भ्रमन्निति ॥ पंखनकूं ऊपर कर काक कुनाद करत भ्रमतो हुयो प्रलय करै. और काक क्रुद्ध होय दूसरे काकपे चढजाय तो मनुष्यनकूं रोगकरके मृत्यु करे ॥ ११९ ॥ द्रव्येति ॥ जो काक द्रव्य हरण कर ले जाय वा पटक जाय तो वैसीवस्तुको विनाश लाभ होय. पीतवस्तु होय तो सुवर्णको लाभ होय और शुक्लत्रस्तु होय तो रजतको
For Private And Personal Use Only
काक रुधिर जो पंखनकूं.