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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९८) वसंतराजशाकुने-सप्तमो वर्गः। आहारदानग्रहणाशनानि कुर्वन्ति खेलंति कलं ध्वनंति।वामे खगी यद्यबला सुशीला निमैथुनं कर्म करोत्यवामे ॥३२१॥ वामरवा यदि वाप्यनुलोमा पांडविकातदभीष्टचरित्रा ॥ वाम गतिर्यदि दक्षिणशब्दा योषिदसौ नियतं तदसाध्वी॥३२२॥ दक्षिणतो यदि मैथुनसंस्थं पांडविकायुगलं कुलटा तत्॥वामदिशित्वथ तादृशचेष्टं स्यात्तदसौ युवतिः पतिभक्ता॥३२३॥ यद्यपसव्यविभागनिनादा वामदिशं भगवत्युपगम्य ॥ पुंविहगेन समं मिलति स्यात्तावतेः स्वजनाध्यभिचारः॥३२४॥ ॥टीका ॥ आहारेति ॥ यदि वामे खग्यः आहारदानग्रहणाशनानि कुर्वति खेलति क्रीडति कलं मधुरं ध्वनंति शब्दं कुर्वति तदा अबला मुशीला यदि केवल मवामा गतिर्भवति तदा सा स्त्री निर्मैथुनं कर्म हास्यादिकं करोतीत्यर्थः ॥ ३२१॥ वामेति ॥ यदि वामरवा यदि वाप्यनुलोमा पांडविका याति तदाभीष्टचरित्रा स्यात् यदि दक्षिण शब्दा वामगतिर्भवति तदेयं योषिन्नियतमसाध्वी स्यात् ॥ ३२२ ॥ दक्षिणत इति ॥ दक्षिणतो यदि मैथुनसंस्थं पांडविकायुगलं स्यात्तदा सा कुलटा स्यात् अथ यदि तादृक्चेष्टं वामदिशि स्यात्तदासौ युवतिः पत्यनुगामिनी स्यात् ॥ ३२३॥ यदीति ॥ यदि अपसव्यविभागनिनादा भगवती वामदिशमुपगम्य पुंविहगेन समं ॥ भाषा॥ नामें जायकरके वा पत्रकू, मंत्रकर पूजनकरके पक्षीके युगलको पूजन कर फिर हाथमें धर करके युगलसूं पूछे यह स्त्री सती है? तुम कहो! ऐसे पूछे ॥ ३२० ।। आहारेति ॥ जो वामभागमें खगी आहार देनों ग्रहण करनो भोजनकरनो ये चेष्टा करती होय, क्रीडा करती होय, मधुर शब्द करती होय तो अबला सुशीला होय. और जो केवल दक्षिणा होय तो वो स्त्री अतिमैथुन और हास्यादिक करै ॥ ३२१ ॥ वामेति ॥ जो पांडविका वामशब्द कर जो जेमने भागमें आय जाय तो वांछित सुंदर चरित्र जाके ऐसी होय. जो दाक्षणमें शब्दकर वामगति होय तो वो स्त्री निश्चय असाध्वी होय ॥ ३२२ ॥ दक्षिणत इति । जो दक्षिणभागमें पांडविकाको युगल मैथुन करतो होय तो वो स्त्री कुलटा जाननी. और जो येही चेष्टा वामदिशामें होय तो स्त्री पतिकी आज्ञा करनेवाली होय ॥ ३२३ ॥ यदीति ॥ जो जेमने भागमें शब्दकर बामदिशामें आयकरके पुरुष विहंगकरके सही For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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