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(९०) वसंतराजशाकुने-षष्ठो वर्गः। मुष्के सकंपे तनयस्य जन्म बस्तौ सकंपे युवतिप्रवृद्धिः ॥ दोष्णः प्रकंपे पुनरूरुपृष्ठे उरोः पुरः स्यात्सुसहायलाभः ॥ ॥८॥ स्याजानुकंपे अचिरेण संधिर्जघाप्रकंपेऽपि च लाभनाशः॥ स्थानाप्तिरूद्धं चरणस्य कंपे यात्रा सलाभांत्रितलप्रकंपे ॥ ९॥ पुंसां सदा दक्षिणदेहभागे स्त्रीणां च वामावयवेषु लाभः ॥ स्पंदाः फलानि प्रदिशंत्यवश्यं निहंति चोक्तांगविपर्ययेण ॥१०॥
॥ टीका ॥
मुष्क इति ॥ मुष्के वृषणे ॥ 'मुष्कोंडकोशो वृषणम्' इत्यमरः ॥ सकंपे तनयस्य जन्म भवति।मुष्कशब्देनाडौ।बस्तिः मूत्रपुटंनाभेरधोभागः। बस्तिर्मूत्राशयेपिच॥ इति हैमः ॥ तत्प्रकंपे युवतिप्रवृद्धिः स्यात् दोष्णः प्रकंपे बाहुस्फुरणे पुनः ऊरुपृष्ठस्फुरणे च ऊरोः पुरस्ताच स्फुरणे सुसहायलाभः स्यात् ॥ ८॥ स्यादिति ॥ जानुकंपे अरिणा प्रधानशत्रुणा अचिरेण संधिर्भवति जंघाप्रकंपे लाभनाशः अर्द्ध चरणस्य कंपे स्थानाप्तिर्भवति चरणतलस्फुरणे यात्रां सलाभां वदंति ॥ ९॥ पुंसामिति ॥ पुसां पुरुषाणां सदा सर्वकालं दक्षिणदेहभागे स्त्रीणां तु वामावयवेषु जातः स्पंदः अवश्यं फलानि प्रदिशति प्रदत्ते । उक्तांगविपर्ययेण जातस्पंदः फ
॥ भाषा॥
और पुरुष स्त्री प्राप्ति होय, वरांगनाम स्त्री पुरुषके चिह्नको है ॥ ७ ॥ मुष्क इति ॥ अंडकोशफडके तो पुत्र जन्म होय और नाभिको अधोभाग फडके तो ( स्त्रीकी प्रवृद्धि करै, भुजाको और ऊरूके पृष्ठभागको और ऊरूके अग्रभागको फडकनो ये तीनों सहायीको लाभकरैहैं ॥ ॥ स्यादिति ॥ जानुफडके तो शीघ्रही वैरी करके संधि होय, और जंघा फडकै तो लाभको नाश होय, और चरणको ऊपरलोभाग फडकै तो स्थानप्राप्ति होय, चरणके नीचे तलुआ फडकै तो लाभ सहित यात्रा होय ॥ ९ ॥ पुंसामिति ॥ पुरुषनके जेमने अंगमें, और स्त्रीनके वांये अंगमें, फडकवेको फल लाभ अवश्य होय, और पुरुषनके बांये अंगमें स्त्रीनके जेमने अंगमें फडकवेके फल पहले कहे ते विपरीत करके कार्यना.
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