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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से हो गया। जैन कवियों ने इन वेलि-काव्यों में भक्ति तत्त्व विवेचन और इतिहास प्रस्तुत किया है । 7. संख्यात्मक और वर्णनात्मक साहित्य का भी सृजन हुआ है । छन्द संख्या के आधार पर काव्य का नामकरण कर दिया जाना उस समय एक सर्वसाधारण प्रथा थी, जैसे- मदनशतक, नामवावनी, समकित बत्तीसी, आदि । 8. बारहमासा यद्यपि ऋतु-परक गीत है, पर जैन कवियों ने इसे आध्यात्मिकसा बना लिया है। नेमिनाथ के वियोग में राजुल के बारहमास कैसे व्यतीत होते, इसका कल्पनाजन्य चित्रण बारहमासों का मुख्य विषय रहा है, पर साथ ही अध्यात्म बारहमासा, सुमति - कुमति बारहमासा आदि जैसी रचनाएँ भी उपलब्ध होती हैं। 8. आध्यात्मिक काव्य कतिपय आध्यात्मिक काव्य यहाँ उल्लेखनीय हैं - रत्नकीर्ति का आराधना प्रातिबोधसार (सं. 1450), महनन्दि का पाहुड़ दोहा (सं. 1600), ब्रह्मगुलाल की त्रेपनक्रिया (सं. 1665), बनारसीदास का नाटक समयसार (सं. 1630) और बनारसीविलास मनोहरदास की धर्म - परीक्षा (सं. 1705), भगवतीदास का ब्रह्म - विलास (सं. 1755 ), विनयविजय का विनयविलास (सं. 1739), द्यानतराय की सम्बोधपंचासिका तथा धर्मविलास (सं. 1780), भूधरदास का भूधर - विलास, दीपचन्द शाह के अनुभव प्रकाश आदि (सं. 1781 ), देवीदास का परमानन्द - विलास और पद - पंकत (सं. 1812), टोडरमल की रहस्यपूर्ण चिट्ठी (सं. 1811), बुधजन का बुधजन - विलास, पं. भागचन्द की उपदेशसिद्धान्त-माला (सं. 1905), छत्रपत का मनमोहन पंचशती (सं. 1905) आदि । जयसागर (सं. 1580 - 1655) का चुनडी - गीत एक रूपक काव्य है, जिसमें नेमिनाथ के वन चले जाने पर राजुल ने चारित्ररूपी चूनड़ी को जिस प्रकार धारण किया, उसका वर्णन है । वह चूनड़ी नवरंगी थी। गुणों का रंग, जिनवाणी का रस, तप का तेज मिलाकर वह चूनड़ी रंगी गयी। इसी चूनड़ी को ओढ़कर वह स्वर्ग गयी । संवाद भी एक प्राचीन विधा रही है, जिसमें प्रश्नोत्तर के माध्यम से आध्यात्मिक जिज्ञासा का समाधान किया जाता था । नरपति (16वीं शती) का दन्तजिव्हा संवाद, सहज सुन्दर (सं. 1572) का आँख - व - कान संवाद, यौवन-जरा-संवाद-जैसी आकर्षक ऐसी सरस रचनाएँ हैं, जिनमें दो इन्द्रियों में संवाद होता है, जिनकी परिणति अध्यात्म में होती है । अन्य रचनाओं में रावण - मन्दोदरी - संवाद (सं. 1562), मोती कम्पासिया संवाद, उद्यम कर्म संवाद, समकितशील संवाद, केसिगोतम संवाद, मनज्ञान संग्राम, सुमति - कुमति का झगड़ा, अंजना सुन्दरी संवाद, उद्यम कर्म संवाद, कपणनारी संवाद, पंचेन्द्रिय संवाद, ज्ञान-दर्शन- चारित्र संवाद, जसवंतसूरि का लोचन - काजल - संवाद (17वीं 856 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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