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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शती) आदि बीसों रचनाएँ हैं, जिनमें रहस्यात्मकता के तत्त्व इतने-अधिक मुखरित हुए हैं कि संवाद गौण हो गये हैं। 9. स्तवन-पूजा और जयमाल-साहित्य __ आध्यात्मिक स्तवन-पूजा और जयमाल का अपना महत्त्व है। साधक रहस्य की प्राप्ति के लिए इष्टदेव की स्तुति और पूजा करता है। भक्ति के सरस प्रवाह में उसके रागादिक- विकार प्रशान्त होने लगते हैं और साधक शुभोपयोग से शुद्धोपयोग की ओर बढ़ने लगता है। पंचपरमेष्ठियों का स्तवन, तीर्थकरों की पूजा और उनकी जयमाला तथा आरती आदि साधना का पथ निर्माण करते हैं। इस साहित्य विधा की सीमन्धर स्वामी स्तवन, मिथ्या दुक्कण विनती, गर्भविचार स्तोत्र, गजानन्द पंचासिका, पंच स्तोत्र, सम्मेदशिखर स्तवन, जैन चौबीसी, विनती संग्रह, नयनिक्षेप स्तवन आदि शताधिक रचनाएँ हैं, जो रहस्य भावना की अभिव्यक्ति में अन्यतम साधन कही जा सकती हैं। भक्तिभाव से ओतप्रोत होना इनकी स्वाभाविकता है। __ पूजा और जयमाला साहित्य में भी कतिपय उदाहरण दृष्टव्य हैं, जो रहस्यात्मक तत्त्व की गहनता को समझने में सहायक बनते हैं। अर्जुनदास, अजयराज पाटनी, द्यानतराय, विश्वभूषण, पांडे जिनदास आदि अनेक कवि हुए हैं, जिन्होंने संगीत साहित्य लिखा है। देखिए, कविवर द्यानतराय की सोलहकारण पूजा में कितनी भाव विभोरता है-कंचन झारी निर्मल नीर, पूजों जिनवर गुन-गम्भीर।। चउपई काव्यों में ज्ञानपंचमी, बलिभद्र, ढोला-मारु, कुमतिविध्वंस, विवेक, मलसुन्दरी आदि रचनाएँ उल्लेखनीय हैं, जो भाषा और विषय की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। इनके अतिरिक्त मालदेव की पुरन्दर चौ., सुरसुन्दरी चौ., वीरांगद चौ., देवदत्त चौ. आदि, रायमल की चन्द्रगुप्त चौ., साधुकीर्ति की नमिराज चौ., सहजकीर्ति की हरिश्चन्द्र चौ., नाहर जटमल की प्रेमविलास चौ., टीकम की चतुर्दश चौ., जिनहर्ष की ऋषिदत्ता चौ., यति रामचन्द्र की मूलदेव चौ., लक्ष्मी बल्लभ की रत्नहास चउपई भी सरसता की दृष्टि से उदाहरणीय हैं। 10. चूनड़ी-काव्य ___चूनड़ी-काव्य में रूपक-काव्य-तत्त्व अधिक गर्भित रहता है। इसी के माध्यम से जैनधर्म के प्रमुख तत्त्वों को प्रस्तुत किया जाता है। विनयचन्द की चूनड़ी (सं.1576), साधुकीर्ति की चूनड़ी (सं. 1648), भगवतीदास की मुकति-रमणी-चूनड़ी (सं. 1680), चन्द्रकीर्ति की चारित्र चूनड़ी (सं.1655) आदि काव्य इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय हैं। विनयचन्द्र की चूनड़ी में पत्नी पति से ऐसी चूनड़ी चाहती है, जो उसे भव-समुद्र से पार करा सके। हिन्दी जैन साहित्य :: 857 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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