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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थात् नर्तकियों का विशिष्ट वर्ग था । होली - जैसे उत्सवों पर निम्न जाति के व्यक्ति नगर मार्गों पर समूह गान नृत्यादि करते थे ।। उत्तराध्ययन की टीका में वाराणसी के दो मातंगपुत्रों की कथा आई है, जो गायक तथा नर्तकों की टोलियाँ बनाकर सारे नगर में घूमते-फिरते थे । I भारतीय जनता का लौकिक व्यवहार सदैव धर्म से अनुप्राणित रहा है। संगीतकला भी धार्मिक अभिव्यंजना से अछूती न रह सकी। जैन आगमों का जन-जन में प्रचार करने के लिए चलित नामक गीतों का उपयोग किया जाता था । महावीर के जीवन-दर्शन सम्बन्धी नाटकों का अभिनय किया जाता था, ऐसे भी कुछ उल्लेख हैं कि जिसमें जैन मुनि भी भूमिकाभिनय करते थे । पिंडनिज्जुति में पाटलिपुत्र में अभिनीत रठ्ठवाल नामक नाटक का उल्लेख है, जिसका अभिनय आशाढभूह नामक जैनमुनि ने किया था । नृत्य नाट्य के अन्तर्गत द्रुय (द्रुत), विलम्बिय (विलम्बित), दुयविलम्बय (द्रुत - विलम्बित) अन्त्रिय (अचित), आरमद्र, पसारिय, भन्तसभान्त, उत्पयपवत इत्यादि अंगों का उल्लेख जैन ग्रन्थों से प्राप्त होता है। इनमें से कुछ नृत्यालयों के, कुछ अभिनय - प्रकारों के तथा कुछ नृत्य - प्रकारों के निदर्शक प्रतीत होते हैं। जैन ग्रन्थों में वाद्य वियाहपण्णट्टित्त, रायापसेणीय, जीवाभिगम, जंबुदीवपण्णत्ति, अनुयोगसूत्र आदि ग्रन्थों में संगीत के तत्कालीन प्राचीन वाद्यों का उल्लेख प्राप्त होता है। रायपसेणीय सुत्त सं. 64 में तुरीय अर्थात् तूर्य के अन्तर्गत निम्न वाद्यों का उल्लेख मिलता है - 1. संख (शंख), 2. सिंग (शुंग), 3. शंखिया, 4. खरमुही, 5. पेया, 6. पीरिपिरिया, 7. पणव, 8. पडह (पटह)घ् 9. भम्मा अथवा ढक्का, 10. होरम्भा अथवा महाढक्का, 11. भेरी, 12. झल्लरी, 13. दुन्दुहि अर्थात् दुन्दुभि, 14. मुरय् अर्थात् मुरज, 15. मुइंग अर्थात् मृदंग, 16. नन्दीमुइंग अर्थात् नन्दी मृदंग, 17. आलिंग अर्थात् आलिंग्य, 18. कुटुम्ब अथवा कस्तुम्ब, 19. गोमुही अर्थात् गोमुखी, 20. मद्दल अर्थात् मर्दल, 21. वीणा, 22. विपंची, 23. वल्लकी, 24. महती, 25. कच्छभी अथवा कच्छपी, 26. चित्तवीणा अर्थात् चित्रावीणा, 27. बद्धीसा अथवा चर्चसा, 28. सुघोशा, 29. नन्दीघोशा, 30. भामरी अर्थात् भ्रमरी, 31. छम्भामरी, 32. परवायणी अर्थात् परिवादिनी, 33. तूणा अर्थात् तुर्ण, 34. तुम्बवीणा, 35. आमोट अर्थात् आमोद, 36. झंझा, 37. नकुल, 38. मुगण्ड अर्थात् मुकुन्द, 39. हुडुकी अर्थात् हुडुक्का, 40 विचिक्की, 41. करडा अथवा करटी, 42. डिंडिम, 43. किणिय अर्थात् किणित, 44. कडम्ब अथवा कन्डा, 45. ड़ड़रिया अर्थात् दर्दरक, 46. डड्डरगा अर्थात् दर्दरिका, 47. कलसिया अर्थात् कलशिका, 48. मड्डय, 49. तल, 50 ताल, 51. कंसताल अर्थात् कांस्यताल, 52. रिंगिरिसिया अथवा सुसभारिका, 53. लटिया, 54. मगरिका अथवा मंगरिया, 55. सुंसुमारिका अथवा शुशुमारिका, 56. वंस अर्थात् वंशा, संगीत :: 705 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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