SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 606
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कोश है, जिसमें एक ही स्थान पर विकासक्रम की दृष्टि से परिभाषाएँ प्रस्तुत की गयी हैं। साथ ही प्रत्येक शब्द के साथ विशेष परिभाषाओं का हिन्दी अनुवाद क्रमसंख्या के साथ दिया गया है। अकारादिक्रम से तीन भागों में विभक्त कोश का प्रकाशन क्रमश: ईस्वी 1972, 1975 एवं 1981 हुआ। __ आगम शब्द कोश- (प्राकृत)-भाग-1, जैन विश्वभारती लाडनूं द्वारा सन् 1980 में इस कोश का प्रकाशन हुआ। इसमें आचारांगादि 11 आगमों में आये शब्दों का संग्रह है। साथ ही उन-उन आगमों का स्थान-निर्देश इसमें किया गया है। __ जैन बिब्लियोग्राफी : यूनिवर्सल एन्सायक्लोपीडिया ऑफ जैन रेफरेन्सजैन सन्दर्भो की दृष्टि से यह एक महत्त्वपूर्ण कोश (विश्वकोश) है। मूलतः इस कोश की योजना एवं सामग्री का संकलन सन् 1945 में बाबू छोटेलाल जी ने किया था। बाद में इसका संशोधन एवं सम्पादन आ.ने. उपाध्ये द्वारा किया गया और 1982 में इसका द्वितीय संशोधित संस्करण निकला। इस कोश में देश-विदेश में प्रकाशित ग्रन्थों और पत्रिकाओं से ऐसे सन्दर्भो को विषयानुसार एकत्रित किया गया है, जिनमें जैनधर्म एवं संस्कृति से सम्बद्ध किसी भी प्रकार की सामग्री प्रकाशित है। कोशगत सामग्री को आठ विभागों में बाँटा गया है। यह कोश दो भागों में विभक्त है। दोनों भागों की प्रविष्टियाँ 2916 हैं। कुल पृष्ठ संख्या 1918 है। पहला भाग 1044 पृष्ठों में पूरा होता है। शेष पृष्ठ दूसरे भाग के हैं। निःसन्देह यह कोश भारतीय, विशेषतः जैन संस्कृति से सम्बद्ध शोधकार्य हेतु उपयोगी सन्दर्भ-ग्रन्थ है। इसे अद्यतन करने की आवश्यकता है। निरुक्त-कोश- (प्राकृत)-अर्धमागधी आगमों में प्रयुक्त प्राकृत शब्दों का अर्थ जानने के लिए यह कोश अधिक उपयोगी है। कोश के सम्पादन-निर्देशक आचार्य महाप्रज्ञ हैं। ई. सन् 1984 में इसे जैनविश्वभारती, लाडनूं ने प्रकाशित किया है। देशी शब्द-कोश- हेमचन्द्रसूरि प्रणीत देशीनाममाला के देश्य शब्दों के अर्थज्ञान के लिए उत्तम रचना है। इस कोश का सम्पादन निर्देशन आचार्य महाप्रज्ञ ने किया है। ई. सन् 1988 में जैनविश्व भारती, लाडनूं से इसका प्रकाशन हुआ है। 439 पृष्ठीय इस कोश में लगभग 10,000 शब्द सन्दर्भ-सहित संगृहीत हैं। __अपभ्रंश हिन्दी कोश- अपभ्रंश जैन साहित्य की प्रमुख भाषाओं में एक है, परन्तु अपभ्रंश का कोई स्वतन्त्रय कोश नहीं मिलता। प्राकृत कोशों से ही इसका काम चलाया जाता है। वस्तुतः प्राकृत कोश से अपभ्रंश कोश की पूर्ति होती नहीं है। अपभ्रंश के क्षेत्र में सम्भवतः यह एक पहला स्वतन्त्र कोश है। इसके सम्पादक डॉ. नरेशकुमार हैं। 869 पृष्ठीय इस कोश में 23000 शब्द विश्लेषित हैं। इस कोश कोश-परम्परा एवं साहित्य :: 597 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy