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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में मूल अपभ्रंश शब्द, संस्कृत रूप, व्युत्पत्ति, अर्थ और अपेक्षित सन्दर्भ आदि प्रामाणिकता से प्रस्तुत किये गए हैं। इसका प्रथम संस्करण 1987 ई. में प्रकाशित हुआ। द्वितीय संशोधित एवं विस्तृत संस्करण सन् 1999 ई. में निकला। इस कोश का प्रकाशन डी.के. प्रिंटवर्ल्ड (प्रा.) लि., नयी दिल्ली द्वारा हुआ है। सामान्यतः यह माना जाता है कि प्राकृत के कोशों से ही अपभ्रंश के अध्ययन में सहायता मिल जाती है, परन्तु कई विद्वानों का यह सघन अनुभव है कि अपभ्रंश के सैकड़ों ऐसे शब्द हैं, जिनका अर्थ प्राकृत के शब्द से अलग है। अतः अपभ्रंश भाषा के स्वतन्त्र कोश की अपेक्षा निरन्तर बनी रही। इस प्रकाशन से उक्त कमी की एक हद तक पूर्ति हो गयी है। डॉ. देवेन्द्र कुमार जैन शास्त्री भी अपभ्रंश कोश हेतु कार्य कर रहे थे; परन्तु उनके दिवंगत हो जाने पर वह कार्य कहाँ, किस स्थिति में है? उसे प्रकाश में आना चाहिए। प्राकृत हिन्दी कोश- यह पाइयसद्दमहण्णवो का एक संक्षिप्त और अपेक्षाकृत लघुकाय संस्करण है। इसका सम्पादन डॉ. के. आर. चन्द्र ने किया है। इसमें बृहत्काय पाइयसद्दमहण्णवो के अधिक उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण शब्दों का संकलन है। ईस्वी सन् 1987 में प्राकृत जैन विकास फंड, अहमदाबाद ने इसका प्रकाशन किया। डिक्शनरी ऑफ प्राकृत लेंग्वेज- यह एक महत्त्वाकांक्षी विशाल योजना है। भंडारकर शोध संस्थान, पूना द्वारा लगभग 2 दशक पूर्व यह कार्य प्रारम्भ हुआ था। बहुत समय तक प्रो. घाटगे के कुशल निर्देशन में यह कार्य चला। अब तक इस कोश के 1800 (अ से ऊ वर्ण तक) पृष्ठ प्रकाशित हो चुके हैं। इस कोश में प्राकृत शब्दों का ऐतिहासिक दृष्टि से अध्ययन प्रस्तुत किया जा रहा है। कुन्दकुन्द कोश- यह एक लघुकाय जेबी कोश है। इसके सम्पादक डॉ. उदयचन्द्र जैन उदयपुर हैं। आचार्य कुन्दकुन्द के साहित्य को आधार बनाकर इसकी रचना की गयी है। जैन परम्परा में सम्भवतः यह प्रथम कोश है, जिसमें किसी एक आचार्य/लेखक की कृतियों को आधार बनाया गया है। इस कोश का प्रकाशन श्री दिगम्बर जैन साहित्य संरक्षण समिति, विवेकविहार दिल्ली द्वारा वीर निर्वाण संवत् 2517 (ई. 1991) में हुआ। प्राकृत हिन्दी शब्दकोश- इस कोश के सम्पादक भी डॉ. उदयचन्द्र जैन, उदयपुर हैं। यह कोश दो भागों में प्रकाशित है। इस कोश में विविध साहित्य से शब्दों का चयन करके उन्हें संयोजित किया गया है। विशेषकर शौरसेनी प्राकृत के शब्दों को देखने-समझने की दृष्टि से यह कोश उपयोगी है। इसका प्रकाशन सन् 2005 में न्यू भारतीय बुक कारपोरेशन, दिल्ली ने किया है। सुधासागर हिन्दी इंग्लिश डिक्शनरी- इसके सम्पादक डॉ. रमेशचन्द्र जैन, 598 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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