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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का संग्रह किया गया है। इसका प्रकाशन अमोल जैन ज्ञानालय, धूलियाँ से सन् 1968 में हुआ। क्रियाकोश - इस ग्रन्थ के भी सम्पादक मोहनलाल बांठिया और श्री चन्द चोरड़िया हैं। सन् 1969 में जैनदर्शन समिति कलकत्ता ने इसका प्रकाशन किया है । इस कोश का संकलन भी दशमलव वर्गीकरण के आधार पर किया गया है और उनके उपविषयों की एक लम्बी सूची है। क्रिया के साथ कर्म विषयक सूचनाएँ भी इसमें दी गयी हैं । लेश्या-कोश के समान इसके सम्पादन के भी तीन आधार हैं। क्रिया कोश में 45 श्वेताम्बर आगमों का उपयोग हुआ है । कुछ दिगम्बर परम्परा के आगमों का भी उपयोग हुआ है। जैनेन्द्रसिद्धान्त कोश- इस कोश के रचयिता क्षुल्लक जिनेन्द्र वर्णी हैं। कोश का प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ ने चार भागों में सन् 1970 से 1973 के बीच किया । इसमें जैन तत्त्वज्ञान, आचारशास्त्र, कर्मसिद्धान्त, भूगोल, ऐतिहासिक व पौराणिक व्यक्ति, राजवंश, आगम, शास्त्र व शास्त्रकार, धार्मिक व दार्शनिक सम्प्रदाय आदि से सम्बद्ध लगभग 6000 शब्द तथा 2100 विषयों का सांगोपांग विवेचन किया गया है। कोश की सामग्री संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश में लिखित लगभग 100 प्राचीन ग्रन्थों से ली गयी है। मूलसन्दर्भ एवं उद्धरण के साथ-साथ हिन्दी अनुवाद भी दिया गया है। कोश में आवश्यक रेखाचित्र तथा सारणियाँ दी गयी हैं, जिससे विषय और अधिक स्पष्ट हो गया है। विषय, प्रस्तुति और मुद्रण की दृष्टि से यह कोश सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सन्दर्भ ग्रन्थ बन गया है। कोश में अधिकतर दिगम्बर सम्प्रदाय के ग्रन्थों का उपयोग हुआ है। कोश के परिशिष्ट के रूप में पाँचवाँ भाग भी निकला है। इसमें चारों भागों के शब्दों-विषयों का सन्दर्भ सहित विस्तृत विवरण दिया गया है। एडिक्शनरी ऑफ प्राकृत प्रापर नेम्स- इस कोश का सम्पादन मोहनलाल मेहता और के. आर. चन्द्र ने मिलकर किया। सन् 1972 में एल. डी. इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, अहमदाबाद ने इसे दो भागों में प्रकाशित किया है। यह कोश जैन साहित्य विशेषतया अर्धमागधी (श्वेताम्बर) आगमों में उल्लिखित व्यक्तिगत नामों के सन्दर्भ में प्रामाणिक जानकारी प्रस्तुत करता है । इस दृष्टि से दिगम्बर सम्प्रदाय के साहित्य को लेकर ऐसा एक कोश नितान्त अपेक्षित है । जैन लक्षणावली - यह एक जैन पारिभाषिक- कोश है। इसका सम्पादन बालचन्द्र शास्त्री ने किया । इस कोश में लगभग 400 दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदाय के ग्रन्थों से उन शब्दों का संकलन किया गया है, जो पारिभाषिक हैं, अर्थात् जिनकी कुछ न कुछ परिभाषा उपलब्ध होती है। जैनदर्शन के सन्दर्भ में यह एक मात्र ऐसा परिभाषा - 596 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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