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डेढ़ मुरज आकार अविनासी पेखिए।। घर मांहि छीको जैसे, लोक है अलोक बीचि
छींके कौं आधार, यह निराधार लेखिए।। -चरचाशतक-8 6. –राजू, असंख्यात योजनों वाली क्षेत्र मापने की सबसे बड़ी इकाई है। 7. एदेण पयारेणं णिप्पणत्ति-लोय-खेत्त-दीहत्तं। ___ वास उदयं भणामो णिस्संदं दिट्टि-वादादो।।1/148 ।। -तिलोय पण्णत्ती। 8. –लोय बहुमज्झ देसे रुखे सारव रज्जुपदर जुदा।
चोद्दस-रज्जुत्तंगा तसणाली होदि गुणणामा।।143 ।। -त्रिलोकसार --एइंदिएहिं भरिदो पंच-पयारेहिं सव्वदो लोओ।
तस-णाडीए वि तसा, ण बहिरा होंति सव्वत्थ ।।122 ।। -कार्तिकेयानुप्रेक्षा। -ऊखल में छेक वंसनाल लोक त्रसनाली, ऊँचै चौदे चौरी एक राजू, त्रस भरी है। यामैं त्रस बाहिर थावर आउ बाँधी कहूँ, मरन सौं अगाऊ गयौ, त्रसचाल करी है।। बाहिर थावर कोउत्रास आड बाँधी होउ, मरनसमै कारमान त्रसरीति धरी है। केवल समुद्घात त्रसरूप तहाजात, तीनौ भांति उहां त्रस, जिनवानी खिरी है।।
-चरचाशतक-10 9. लोय-बहमज्झ देसे. तरुम्मि सारं व रज्जपरजूदा।
तेरस रज्जुच्छेहा किंचूणा होदि तसणाली।।2/6।। -ति. प. 10. सयलो एसय लोओ णिप्पण्णो सेठि-विंद-माणेण।
तिवियप्पो णादव्वो हेट्ठिम-मज्झिल्ल-उड्ड-भेएण।।1/136 ।। –ति.प. ---मेरुस्स हिट्ठ-भाए सत्त वि रज्जू हवेइ अह-लोओ।
उड्ढम्मि उड्ढलोओ, मेरुसमो मज्झमो लोओ ।।120. कार्तिकेयानु.
-आदिपुराण-चतुर्थपर्व-39-40 11. गोमुत्त-मुग्ग-वण्णा घणोदधी तह घाणाणिलो वाऊ।
तणुवादो बहु-वण्णो रुक्खस्स तयं व वलय-तियं ।।1/271 ।। -ति. प. पढमो लोयाधारो घणोवही इह घणाणिलो तत्तो। तप्परदो तणुवादो, अंतम्मि णहं णिआधारं । /272 ।। --ति.प. -गोमुत्त-मुग्ग-णाणा-वण्णाण घणंबु-घण-तणूण हवे।
वादाणं वलयतयं रुक्खस्स तयं व लोगस्स।।123 ।। –त्रिलोकसार -हरिवंशपुराण-4/33-34, आदिपुराण-4/43-44 -तीनौं लोक तीनौं वातवलै बेढ़े सब ओर, वृच्छछाल, अंडजाल तन-वाम देखिए।४॥ -
चरचाशतक 12. ति. पण्णत्ती-1/274-276-त्रिलोकसार-124-126-हरिवंश पुराण-4/34-41
घनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठाः सप्ताधोऽधः ।।3/1।। तत्त्वार्थसूत्र
-चरचाशतक–'तलै वातवलै मौटे...एक भाग मैं निहारने ।15।। 13. रत्न-शर्करा-बालुका-पंक-धूम-तमो-महातम:प्रभा भूमयो... ।।3/1।। त. सूत्र
-त्रिलोकसार-144-145-हरिवंश पुराण-4/43-46 14. त्रि. सार-146, 149–ति. पण्णत्ती-2/9, 22-हरिवंश पु. 4/47-48, 57-58 15. त. सूत्र–3/2, त्रि. सार-151-ति. प.-1/27-हरिवंशपुराण-4/73-74
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