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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 16. ति. पण्णत्ती-2/11-15, 20 17. ति. प. 219-त्रिलोकसार-146-148 18. त्रि.सार-179-182 19. त्रि. सार-153 20. ति. प. 2/36-39,71-72, 94 21. त्रिलोकसार-184-194, 197-ति. प.-2/29-35, 309-हरिवंशपुराण-4/355-368 तत्त्वार्थसूत्र-3/3, 4, 5 सूत्र 22. "नारका नित्याशुभतरलेश्या-परिणाम-देह-वेदना-विक्रियाः"।।3/3 ।। तत्त्वार्थसूत्र 23. त्रि. सार-198-200-ति. प. 2/203-216-त. सूत्र-4/34, 35, 36 सूत्र –हरिवंश पुराण-4/249-294-कार्तिकेयानुप्रेक्षा–गाथा-165 24. ति.प. 2/217-त्रि.सा.-201-हरि. पुराण-4/295-339-कार्तिके.-168 25. ति.प. 2/272-त्रि.सार-202-हरिवंशपुराण-4/340 26. 'बह्वारम्भपरिग्रहत्वं नारकस्यायुषः' 6/14 त.सू./ति.प. 2/294-302/हरिवंश पु.-4/372 27. ति.प.-2/285-287-हरिवंश पु. 4/375-377-त्रि.सार-205 28. ति.प. 2/290-293-त्रि.सार-203-204 हरिवंश पु. 4/378-382 29. रयणादि णारयाणं णियसंखादो असंखभागमिदा। पडिसमयं जायंते तत्तियमेत्ता य मरंति पुढं । 12/289 ।। ति. पण्णत्ती 30. ति. प. 2/288-त्रि. सार-206-हरिवंश पु. 4/371 31. ति.प. 2/362-364 32. लो. वि. 1/3-हरिवंश पु. 5/9 33. तत्रैवास्मिन-नसंखेय-सागर-द्वीप-वेष्टितः। जम्बूद्वीपः स्थितो वृत्तो जम्बूपादपलक्षितः।।5।2।। हरि.पु. तत्त्वार्थसूत्र 3/7, 8 सूत्र 34. तसणाली बहुमज्झे चित्ताअ खिदीअ उवरिमे भागे। अइवहो मणुवजगो जोयण-पणदाल-लक्ख-विक्खंभो।।4/6।। ति. प. 35. तन्मध्ये मेरुनाभित्तो योजन-शत-सहस्र-विष्कंभो जम्बूद्वीपः ।।त. सूत्र 3/9 माणुस-जग-बहुमज्झे विक्खादो होदि जंबुदीओ त्ति। एकज्जोयण-लक्खं विक्खंभजुदो सरिस-बट्टो ।।4/11।।-ति.प. -हरिवंशपु.-5/3-लोकविभाग-1/7 36. त. सूत्र-3/10-ति. प. 4/92-93-त्रिलोकसार-564-हरिवंश पु. 5/13-14 37. हिमवं महादिहिमवं णिसहो णीलो य रुम्मि सिहरी य। मुलोवरि समवासा मणियासा जलणिहिं पट्ठा।।565 ।। त्रि.सार -ति. प. 4/96, 102-त. सूत्र-3/11-हरिवंश पु. 5/15-16 38. त्रि.सार-566, ति.प. 4/97-त. सूत्र-3/12, 13 सूत्र 39. त्रि.सार-567–त. सूत्र-3/14, 16 सूत्र-हरिवंश पु. 5/120-121 40. त. सूत्र-3/17, 18, 19-त्रि. सार-572-हरिवंश पु. 5/129-130 41. त्रि. सार-578-579-त. सूत्र 3/20, 21, 22-हरिवंश पु. 5/133-135 42. ति. प. 4/103-त्रि.सार-604 हरिवंश पु. 5/17-18 त. सूत्र-3/24, 32 43. ति. प. 4/109-110 हरिवंश पु. 5/20-21 556 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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