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लोगो संखपदेसो जगसेढि - घणप्पमाणो हु । 3 ।। लोगो अकिदिमो खलु अणाशणिहिणो सहाबणिव्वत्तो । जीवाजीवेहिं फुडो सव्वागासवयवो णिच्चो ।। 4 ।। - त्रिलोकसार -तिलोयपण्णत्ती- पठमो महाधिकार, गाथा - 91-92
- सव्वायासमणंतं तस्स य बहुमज्झ-संठिओ लोओ।
सो केण वि णेव कओ णय धरिओ हरि-हरादीहिं । 1115 ।। -कार्तिकेया.
- हरिवंश पुराण - 4 / 1-5 - आदिपुराण - 4 / 39-42
- अचल अनादि अनन्त अकृत अनमिट अखंड सब । अमल अजीब अरूप पंच नहिं इक अलोक नभ ।। निराकार अविकार अनन्त प्रदेस विराजै ।
सुद्ध सुगुन अवगाह दसौं दिस अन्त न पाजै ।।
या मध्य लोक नभ तीन विध अकृत अमिट अनईसरौ ।
अविचल अनादि अनअंत सब भाख्यौ श्री आदीस्वरौ । 16 ||
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- किन हू न करौ न धरै को, षट द्रव्यमयी न हरै को ।
सो लोकमांहिं बिन समता, दुःख सहे जीव नित भ्रमता । । - छहढाला, दौलतराम - लोक अलोक आकाश माँहिं थिर निराधार जानो ।
5. हेट्ठिम लोयाआरो वेत्तासण-सण्णिहो सहावेण ।
पुरुष रूप कर कटी धरे षट द्रव्यन सों मानो । । - मंगतरायकृत
इसका कोई न करता हरता अमिट अनादि है । - (लोकभावना)
-चरचाशतक
मज्झिम लोयाआरो उब्भिय - मुर- अद्ध- सारिच्छो । 1137 ।। उवरिम लोयाआरो उब्भिय - मुखेण होई सरिसत्तो । संठाणो एदाणं लायाणं एहिं साहेमि ।।138 - ति.प./ पढम अधि. ।
- पूरब-पच्छिम सातनर्क तलें राजू सात
आगें घटा मध्यलोक राजू एक रहा है। ऊँ बढ़ गया ब्रह्मलोक राज पाँच भया आगें घटा अन्त एक राजू से दहा है ।। दच्छिन- उ - उत्तर आदि मध्ये अन्त राजू सात ऊँचा चौदह राजू षट- द्रव्य भरा लहा है । असंख्यात परदेस मूरतीक कियौ भेस करै धरै हरै कौन स्वयंसिद्ध कहा है ।। 7 ।। - अधोलोकवेत्रासन मध्यलोक थाली भन ऊरध मृदंग गनि ऐसो ही विसेखिए । कर कटि धारि पाऊं कौं पसारि नराकार
554 :: जैनधर्म परिचय
- उब्भिय दलेक्कमुरबद्धय संचय -सण्णिहो हवे लोगो ।
अद्धदयो मुरबसभो चोद्दस - रज्जूदओ सव्वो । 16 ।। – त्रिलोकसार
— ति. प. 1/149-143, – कार्तिकेयानुप्रेक्षा 118-120 - हरिवंश पु. 4/6-11 - चौदह राजू उतंग नभ लोक पुरुष संठाण |
तामें जीव अनादितैं भरमत हैं बिन ज्ञान ।। - लोकभावना (12 भावना)
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