SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 562
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 7. आदिपुराण-(प्रथम भाग) (आ. श्री जिनसेन) , छठा संस्करण, 1998, प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली-110003 8. कार्तिकेयानुप्रेक्षा-(श्री स्वामिकुमार) द्वितीय आवृत्ति, वी. नि. 2504, प्रकाशक श्री परमश्रुत प्रभावक मंडल, राजचन्द्र आश्रम, अगास 9. सर्वार्थसिद्धि-(आ. श्री पूज्यपाद), 15वाँ संस्करण, सन् 2009, प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली-110003 10. तत्त्वार्थराजवार्तिक-(आ. श्री अकलंक देव), आठवाँ संस्करण, सन् 2008, प्रकाशक- भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली-110003 11. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भा. 3-(क्ष. श्री जिनेन्द्रवर्णी), 5वाँ संस्करण-1997, । प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली-110003 12. जैन तत्त्वविद्या-(मुनिश्री प्रमाणसागर जी), 10वाँ संस्करण-2008, प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली-110003 13. त्रिलोकभास्कर-(आर्यिका श्री ज्ञानमती माता जी), द्वि. संस्करण-1999, प्रकाशक-श्री दि. जैन त्रिलोक शोध संस्थान, हस्तिनापुर 14. चरचाशतक-(कविवर श्री द्यानतराय), द्वितीय आवृत्ति, अप्रैल-1997, प्रकाशक श्रीमती गीतादेवी वीरचंद मित्तल, 48 जूनापीठा, इन्दौर 15. तत्त्वार्थसूत्र निकष-सर्वोदय विद्वत्संगोष्ठी, सतना-सित. 2004, प्रकाशक-सकल दि. जैन समाज, सतना (म.प्र.) 16. तीर्थंकर-मासिक जैनभूगोल विशेषांक, अगस्त-1992, सम्पादक-डॉ. नेमिचन्द जैन, इन्दौर सन्दर्भ-संकेत 1. लोकालोकविभक्ते-युगपरिवृत्तेश्चतुर्गतीनां च। ____ आदर्शमिव तथामतिरवैति करणानुयोगं च ।।44 ।। -- रत्नकरण्डश्रा. 2. 'लोको जनेऽपि भुवने स्यादवात्तु विलोकने' –विश्वलोचन कोश। 3. 'धर्माधर्मादीनि द्रव्याणि यत्र लोक्यन्ते, सः लोकः' –सर्वार्थसिद्धिः --दीसंति जत्थ अत्था जीवादीया स भव्यदे लोओ 1121 ।। – कार्तिकेयानुप्रेक्षा -धम्माधम्मागासा गदिरागादि जीव पोग्गलाणं च। जावत्तावल्लोगो आयासमदो परमणंतं ।। ।। –त्रिलोकसार -लोक्यन्तेऽस्मिन्निरीक्ष्यन्ते जीवाद्याः सपर्ययाः । इति लोकस्य लोकत्वं निराहुस्तत्त्वदर्शिनः ।।4/13 ।। --आदिपुराण क्षियन्ति निवसन्त्यस्मिन् जीवादि द्रव्यविस्तस्तराः। इति क्षेत्रं निराहुस्तं लोकमन्वर्थसंज्ञया।4/14।। -आदिपुराण 4. सव्वागासमणंतं तस्स य बहुभागम्हिभज्झ-दिस – भगामिह । भूगोल :: 553 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy