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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ii) अक्षर-संकेतों द्वारा (iii) शब्द-संकेतों द्वारा प्रत्येक अंक अथवा संख्या को व्यक्त करने वाले अनेक अक्षर एवं शब्द नियत हैं। इन शब्दों का चयन जैन वाङ्मय से किया जाता है। यथा रत्न 3 के लिए, गति 4 के लिए, इन्द्रियाँ 5 के लिए, द्रव्य 6 के लिए, तत्त्व 7 के लिए, गुणस्थान 14 के लिए, तीर्थंकर 24 के लिए। अक्षरों द्वारा अंकों को लिखने की पद्धति गोम्मटसार में उपलब्ध है। अंकों एवं अक्षरों दोनों के माध्यम से संख्याओं को व्यक्त करने की अनेक विधियों का प्रयोग जैन-ग्रन्थों में मिलता है। (i) दायीं ओर से बायीं ओर तक प्रत्येक अंक का प्रतिपादन एवं व्युत्क्रम। (ii) स्थान मान के आधार पर अंकों का प्रतिपादन। (ii) आदि एवं अन्त के अंकों का उल्लेख कर मध्य के तुल्य अंकों का एक-साथ उल्लेख। (iv) किसी संख्या के वर्ग या घन के रूप में किसी संख्या को व्यक्त करना। (v) शब्दों द्वारा अंकों का स्थान-क्रमानुसार उल्लेख। जैनाचार्यों ने समस्त संख्याओं को 3 मुख्य वर्गों एवं पुनः 21 उपवर्गों में विभाजित कर उनमें अन्तर एवं क्रम निर्धारित किया है। (i) संख्यात–जहाँ तक गणना सम्भव है। (ii) असंख्यात-गणना से आगे की राशि किन्तु अगणनीय अनन्त से छोटी। (iii) अनन्त-असंख्यात से बड़ी, किन्तु व्यय होने पर भी अनन्त काल तक न समाप्त होने वाली। पुनः संख्यात को 3, असंख्यात को 9 एवं अनन्त को 9 भेदों में विभाजित कर उनमें सूक्ष्म-अन्तर किया है। अनन्त को स्वरूप एवं प्रकृति के आधार पर 11 भेदों में अलग से भी विभाजित किया गया है। जैन आचार्यों ने बड़ी संख्याओं को व्यक्त करने हेतु घातांकों के आधुनिक सिद्धान्तों, अल्प-बहुत्व की मौलिक रीति, वर्गित संवर्गित की रीति का प्रयोग किया है। इसके अन्तर्गत 2 का तृतीय वर्गित संवर्गित 256256 की विशाल राशि है। प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय वर्गित संवर्गित निम्नांकित हैं3221' = 2 2 ={2}2} 3. Piy' = {{2per starfol = 256 गणित :: 503 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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