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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म और विज्ञान डॉ. नलिन के. शास्त्री देह में रहकर विदेह की साधना का फलसफा : जैनधर्म-उत्थानिका जैनधर्म एक ऐसा पवित्र अनुष्ठान है, जिसका उद्देश्य आत्मा का शुद्धिकरण है। यह एक ऐसा धर्म है; जो न तो मिलता है गाँव में, न कहीं जंगल में, न ही पहाड़ों के शिखरों पर, न किसी मठ में, प्रत्युत यह तो स्पन्दित होता है मनुष्य की अन्तरात्मा में। सत्य के सदन में अंहिसा के अवतरण का नाम है जैनधर्म। अचौर्य के आचरण और अपरिग्रह के अनुकरण का नाम है जैनधर्म। अनेकान्तवाद के आकाश में उत्सर्ग की उड़ान का नाम है जैनधर्म। अवैर की अभिव्यक्ति और क्षमा की शक्ति का नाम है जैनधर्म । सहिष्णुता की सात्विकता और संयम के सामर्थ्य का नाम है जैनधर्म । सद्भाव से सरोकार और समता के सूत्रधार का नाम है जैनधर्म। जैनधर्म, समता के सूजन और विषमता के विसर्जन का सृजनात्मक नाम भी है। समत्व की साधना और क्षमत्व की आराधना ही जैनधर्म की चेतना और चिन्तन है। एक वाक्य में कहें, तो जैनधर्म, अहिंसा की आसन्दी- यानी प्रेम और समत्व से, संयम के रत्नत्रयी मार्ग की मोक्षमयी साधना का मार्ग प्रशस्त करता है। जैनधर्म के विचारों को किसी काल, देश अथवा सम्प्रदाय की सीमा में नहीं बाँधा जा सकता। यह प्राणी-मात्र का धर्म है। धर्म का हृदय अनेकान्त है और अनेकान्त का हृदय है समता। समता का अर्थ है परस्पर सहयोग, समन्वय, सद्भावना, सहानुभूति एवं सहजता। साधना की सिद्धि बहिरात्मा के अन्तरात्मा की प्रक्रिया से गुजरकर स्वयं परमात्मा हो जाने में हैं। देह में रहकर विदेह की साधना का फलसफा यदि कहीं पर रचा बसा है, तो वह है जैनधर्म । शरीर आत्मा का प्रवेश द्वार है। शरीर के रहते हुए आत्मा को मुक्त कराना ही जीवन का सबसे बड़ा स्वार्थ है। अतः शरीर को जानना, इसकी भाषा को समझना, हमें भीतर के अदृश्य धरातलों की (मन, बुद्धि, आत्मा की) गतिविधियों की जानकारी देता है। पास में कौन व्यक्ति बैठा है, थाली में रखा कौनसा व्यंजन आज नहीं खाना चाहिए, आदि बाहरी परिस्थितियों की सूचना भी शरीर के स्पन्दन देते हैं। शरीर के माध्यम से कौन-सी ऊर्जाएँ बाहर जाती हैं, मन के स्पन्दन 472 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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