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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रूप समता के परिणामों में सामायिक होती है। आत्म स्वभाव में स्थिरता रूप परिणामों में, सर्व सावद्य (पाप) योग से निवृत्ति रूप सामायिक होती है। तीनों ही संन्ध्याओं में, या पक्ष और मास के सन्धि दिनों में या अपने इच्छित समय में बाह्य और अन्तरंग समस्त कषायों का निरोध करना सामायिक है। (2) छेदोपस्थापना-निर्विकल्प सामायिक संयम की प्रतिज्ञाबद्धता में, जिसमें कि विकल्पों का सेवन नहीं होता, ऐसी दशा में जीव टिक नहीं पाता है, तब व्रत, समिति, गुप्ति रूप छेद के द्वारा पुनः स्वयं को सामायिक में स्थापित करना या विकल्पात्मक चारित्र का नाम छेदोपस्थापना है।। (3) परिहार विशुद्धि-मिथ्यात्व, रागादि विकल्प मलों का प्रत्याख्यान अर्थात् त्याग करके, विशेष रूप से आत्म-शुद्धि अथवा निर्मलता ही परिहार-विशुद्धि है। (4) सूक्ष्म साम्पराय-स्थूल-सूक्ष्म प्राणियों के वध के परिहार में जो पूरी तरह अप्रमत्त हैं, जागरुक हैं। अत्यन्त निर्वाध, उत्साहशील, अखण्डित चारित्र, जिसने कषाय के विष रूप अंकुरों को खोंट दिया है, सूक्ष्म मोहनीय कर्म के बीज को भी जिसने नाश के मुख में ढकेल दिया है, उस परम सूक्ष्म लोभ वाले साधु के सूक्ष्म साम्पराय होता है। (5) यथाख्यात-अशुभ रूप मोहनीय कर्म के उपशान्त अथवा क्षीण हो जाने पर 'जैसा निष्कम्प सहज शुद्ध स्वभाव से कषाय रहित आत्मा का स्वरूप है' वैसा ही आख्यात अर्थात् कहा गया है, सो यथाख्यात चारित्र है। यथाख्यात चारित्र उपशान्त कषाय वीतराग छद्मस्थ, क्षीणकषाय वीतराग छद्मस्थ, सयोग केवली तथा अयोगी केवली इन चार गुणस्थानों में होता है। उक्त रूप से सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रमयी एक मोक्षमार्ग द्वारा ही समस्त कर्मजाल रूप दुख का नाश होकर स्वाधीन, अविनाशी, यथार्थ सुख मोक्ष प्रगट होता है। आचार्य कुन्दकुन्द ने 'समयसार' में संक्षेप में यही बात कही है जीवादी सद्दहणं सम्मत्तं तेसिमधिगमो णाणं। रायादी परिहरणं चरणं ऐसो हु मोक्ख पहो।। 155।। जीव आदि तत्त्व का श्रद्धान् सम्यग्दर्शन, जीव आदि तत्त्व का ज्ञान सम्यग्ज्ञान एवं रागादि का परिहार रूप सम्यक्चारित्र, यही मोक्ष-पथ, मोक्ष-मार्ग है। ध्यान, भावना एवं मोक्षमार्ग :: 471 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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