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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मोक्षमहल की परथम सीढ़ी, या बिन ज्ञान चरित्रा। सम्यकता न लहै सो दर्शन धारो भव्य पवित्रा। जिनागम में सम्यग्दर्शन की चार परिभाषाएँ दी हैं1. श्रद्धानं परमार्थानामाप्तागमतपोभृताम्। त्रिमूढापोढमष्टांगं सम्यग्दर्शनमस्मयम् ।। तीन मूढ़ता रहित आठ अंग सहित सच्चे देव-शास्त्र-गुरु रूप परमार्थियों का श्रद्धान ही सम्यग्दर्शन है। -आ. समन्तभद्र : रत्नकरण्ड श्रावकाचार, श्लोक 4 2. "तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्" सात तत्त्वों के श्रद्धान को सम्यग्दर्शन कहते हैं। -आचार्य उमास्वामी : तत्त्वार्थसूत्र 1/2 3. समयसार में स्व-पर भेद-विज्ञान को सम्यग्दर्शन कहा गया है। तथा4. छहढाला में पर-द्रव्यों से भिन्न आत्मा के श्रद्धान को सम्यग्दर्शन कहा है। वैसे तो सभी चारों अनुयोग ही अप्रत्यक्ष रूप से जैन अध्यात्म के निरूपक हैं, क्योंकि सभी में डायरेक्ट-इनडायरेक्ट रूप से आत्मा का ही निरूपण है; परन्तु छहढाला, तत्त्वार्थसूत्र एवं समयसार तो विशुद्ध अध्यात्म के ही ग्रन्थ हैं, रत्नकरण्ड श्रावकाचार का प्रथम अध्याय भी सम्यग्दर्शन की मुख्यता से ही लिखा गया है, उसमें भी अध्यात्म का ही विषय अधिक है। अब हम अध्यात्म के प्रमुख ग्रन्थ समयसार और नाटक समयसार के माध्यम से जैन अध्यात्म का अध्ययन प्रस्तुत करते हैं, जो हमें 'जैन अध्यात्म' को गहराई से जानने में मदद करेगा। हिन्दू धर्म के श्रेष्ठ ग्रन्थ गीता को भी केवल इस कारण आध्यात्मिक ग्रन्थ कहा जाता है, क्योंकि उसमें आत्मा को अनादि-अनन्त और अमर- तत्त्व के रूप में देखा गया है। वहाँ लिखा है नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो, न शोषयति मारुतः।। आत्मा शस्त्रों से छिदती नहीं, इसे अग्नि जला नहीं सकती, यह जल से गलता नहीं तथा इसे वायु भी सुखा नहीं सकती। 1. अब प्रथम समयसार परमागम के जीवाजीवाधिकार के आधार से यहाँ आत्मा के स्वरूप पर विचार करते हैं। तदुपरान्त इसी ग्रन्थ के कर्ता-कर्म अधिकार के आधार से आत्मा के कर्ता-कर्म एवं पुण्य-पाप आदि अधिकारों के आधार से पुण्य-पाप आदि पर विचार करेंगे। अध्यात्म :: 401 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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