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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir को धर्म में लगाया जाता है। यह अनुयोग मुख्यतया तुच्छबुद्धि जीवों के प्रयोजन से अर्थात् अव्युत्पन्न मिथ्यादृष्टियों के प्रयोजन से लिखा गया है। जिन्हें तत्त्वज्ञान हो गया है, उन्हें भी ये प्रथमानुयोग के कथन उदाहरण-रूप भासित होने से सार्थक होते हैं। करणानुयोग में राग-द्वेष-मोह के कारण जीव से बँधे हुए अष्ट कर्मों के विशेष कथन द्वारा तथा त्रिलोकादि की रचना निरूपित करके जीवों को धर्म में लगाया जाता है, 'करण' का अर्थ गणित होता है। गणित की मुख्यता से इस शैली में त्रिलोकादि का स्वरूप बताया जाता है तथा गुणस्थान आदि से जीव के भावों का कथन होता है। चरणानुयोग में नानाप्रकार से धर्म के साधनों का निरूपण करके जीवों के आचरण को सुधार कर उन्हें धर्म में लगाया जाता है, इस कारण इसमें जीवों के आचरण का मुख्यता से निरूपण होता है। द्रव्यानुयोग में द्रव्यों एवं तत्त्वों का निरूपण करके जीवों को धर्म में लगाते हैं। इस कथन शैली में आत्मज्ञान की मुख्यता होती है। अपने वर्ण्य विषय 'जैन अध्यात्म' को जानने के लिए द्रव्यानुयोग के शास्त्रों का अध्ययन ही विशेष कार्यकारी है, क्योंकि 'जैन अध्यात्म' द्रव्यानुयोग से ही सम्बन्धित है। अतः हम द्रव्यानुयोग के आधार से ही जैन अध्यात्म का अध्ययन करेंगे। द्रव्यानुयोग में आचार्य श्री कुन्दकुन्ददेव द्वारा रचित समयसार, प्रवचनसार, नियमसार और पंचास्तिकाय संग्रह ग्रन्थ तो प्रमुख हैं ही, आचार्य नेमिचन्द्र द्वारा रचित द्रव्यसंग्रह, आ. उमास्वामी द्वारा रचित तत्त्वार्थसूत्र, आ. अकलंक देव द्वारा रचित राजवार्तिक, आ. पूज्यपाद स्वामी द्वारा रचित सर्वार्थसिद्धि, आ. गुणभद्र का आत्मानुशासन, आ. योगीन्दु देव के द्वारा रचित परमात्मप्रकाश एवं योगसार तथा कविवर बनारसी दास का नाटक समयसार आदि ग्रन्थों में भी आत्मा की मुख्यता से ही सात तत्त्वों एवं छहद्रव्यों का वर्णन है। अतः ये सभी ग्रन्थ भी अध्यात्म के प्रतिपादक ही हैं। उपर्युक्त सभी ग्रन्थ 'जैन अध्यात्म' की श्रेणी में ही आते हैं; क्योंकि इन सभी में आत्मा की मुख्यता से ही कथन है। वैसे तो सम्पूर्ण जिनागम एक आत्मज्ञान के लिए ही समर्पित है; परन्तु प्रथमानुयोग में महापुरुषों के चरित्रों का, करणानुयोग में कर्मों की विचित्रता का तथा चरणानुयोग में आचरण की मुख्यता से कथन होता है। एकमात्र द्रव्यानुयोग में ही जीवादि सात तत्त्व, छहद्रव्य तथा मोक्ष के साक्षात् कारण निश्चय सम्यग्दर्शन, निश्चय सम्यग्ज्ञान एवं निश्चय सम्यक्चारित्र का निरूपण होता है, अतः 'जैन अध्यात्म' के अध्ययन हेतु द्रव्यानुयोग की रचना हुई है। यही जैन अध्यात्म के लिए महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी है। __ मोक्ष-महल की प्रथम सीढ़ी रूप जो सम्यग्दर्शन है, उसकी उत्पत्ति जैन अध्यात्म के अध्ययन बिना सम्भव ही नहीं है। अध्यात्म-रसिक पण्डित श्री दौलतरामजी छहढाला में कहते हैं 400 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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