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अध्यात्म
पं. रतनचन्द भारिल्ल
प्रस्तुत लेख का विषय 'जैन अध्यात्म' है। अत: इस लेख के द्वारा हम यह जानने का प्रयत्न करेंगे कि-जैन अध्यात्म क्या है? जैनधर्म में अध्यात्म किसे कहते हैं?
'जैन अध्यात्म' में दो शब्दों का समावेश है-(1) जैन (2) अधि + आत्म = अध्यात्म। जो जिन का या जिनेन्द्र देव का भक्त है, वह जैन है तथा 'अधि' उपसर्ग पूर्वक आत्मन् शब्द है। अधि उपसर्ग का अर्थ ज्ञान होता है, अतः जैन धर्म की दृष्टि से जो आत्मज्ञान है, वही 'जैन अध्यात्म' है। __ अब हमें यह जानना है कि जैनधर्म के अनुसार अध्यात्म का स्वरूप क्या है? और हमें जैन अध्यात्म जानना क्यों जरूरी है? ___ जैनधर्म के अनुसार आत्मा में उत्पन्न हुए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र को ही मोक्षमार्ग में अध्यात्म कहा है। शुद्ध आत्मा की प्रतीति या श्रद्धान ही सम्यग्दर्शन है तथा आत्मा के शुद्ध स्वभाव को जानना सम्यग्ज्ञान एवं उस आत्मा में ही जमना, रमना, सम्यक् चारित्र है। इस प्रकार इन तीनों का स्वरूप जानना ही 'जैन अध्यात्म' का ज्ञान है।
सभी जीव संसार के दुःखों से मुक्त होना चाहते हैं, क्योंकि सच्चा सुख मोक्षअवस्था में ही है। वह मोक्ष जैन अध्यात्म ज्ञान के बिना सम्भव नहीं है, अतः जैन अध्यात्म का जानना अत्यावश्यक है।
जैनधर्म के अनुसार सृष्टि अर्थात् जगत् अनादि-अनन्त है, स्व-संचालित है, इसका कर्ता कोई ईश्वर नहीं है। इसमें मूलत: 6 द्रव्य हैं, पहला-द्रव्य जीव है, ये जीव द्रव्य अनन्त हैं, दूसरा-पुद्गल द्रव्य है, ये अनन्तानन्त हैं। तीसरा-धर्मद्रव्य एक है, चौथा-अधर्म द्रव्य भी एक ही है, पाँचवा-आकाश द्रव्य है, यह भी एक है तथा छठवाँ-कालद्रव्य है ये असंख्य हैं । इसका विस्तृत वर्णन आचार्य कुन्दकुन्द के पंचास्तिकाय में है। जिज्ञासु जीव वहाँ से जानें। विस्तारभय से वह सब यहाँ देना सम्भव नहीं है।
स्वभाव से तो सभी आत्माएँ एक प्रमाण ज्ञान एवं सुख-स्वभावी ही हैं; सभी आत्माएँ समान ही हैं, कोई छोटा-बड़ा नहीं है, परन्तु संसार-अवस्था में जीव अपने ज्ञान-स्वभाव को भूला है तथा पर पदार्थों में इष्टानिष्ट की मिथ्या कल्पना करके रागी
398 :: जैनधर्म परिचय
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