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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अहिंसा, त्याग, संयम, ब्रह्मचर्य, ध्यान-प्रार्थना, क्षमा, सभी प्राणियों में समानता। स्वर्णिम नियम-'दूसरों से ऐसा व्यवहार करो; जैसा आप स्वयं उनसे चाहते हो। ईश्वर आपके भीतर है; शान्ति बनाये रखने वाले-ईश्वर के पुत्र कहलाएँगे; अपने शत्रु के प्रति दया; अपने पड़ोसी से प्रेम अर्थात् प्राणी-मात्र से स्नेह; दान, क्षमा और स्वयं-सेवी भावना; स्वामित्व एवं निर्धनता; जैन-धर्म के पाँच महाव्रत और क्रिश्चियनों तथा यहूदियों के दस आदेश कुछ उत्तम वचन (उद्धरण) : सभी जीवों के प्रति अहिंसा और दया अपने प्रति दया है। इससे व्यक्ति अपने-आपको विभिन्न प्रकार के पापों और उनसे उत्पन्न कष्टों से मुक्त रखता है। वह अपनी स्वतन्त्रता प्राप्त कर सकता है। -भगवान महावीर सर्वोपरि धर्म है-वैश्विक भाईचारा, और सभी प्राणियों को अपने तुल्य समझना। -गुरुनानक एक समय आएगा, जब मनुष्य पशुओं की हत्या को मानव-हत्या के समान समझेंगे। -लियोनार्दो दा विंची क्रूरता आधुनिक सभ्यता का कैन्सर है। -रेव. ए. डी. बेल्डन छोटे से छोटे पशु के प्रति सहानुभूति रखना मनुष्य का सबसे बड़ा सद्गुण है। -चार्ल्स डार्विन सन्दर्भ 1. डी. आर. मेहता - "Comprehensive Concept of Ahimsa, its application in real life." 2. शगनचन्द जैन -A paper titled "Ahinsa/Non violence, its Dimensions and Practices." अहिंसा-एक संक्षिप्त प्रवेशिका :: 397 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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