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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org बातचीत में, सन्देश में या पूजा में ही नहीं, अपितु मन्दिर के भीतर-बाहर सभी स्थानों पर अहिंसा को अहर्निश अपने आचरण में ढाल कर उसे एक स्वभाव ही बना लेना चाहिए। अहिंसा एक जैन का मूलमन्त्र, उसकी पहचान, धर्म और गहना होनी चाहिए। जैन कौन है ? - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक जैन अहिंसा, स्नेह, करुणा, शान्ति, सामंजस्य और एकता का चिह्न होना चाहिए। अहिंसा करुणा का पर्याय है- दूसरे के दुःख को अनुभव करना है । कर्म की चार अवस्थाएँ - -- जैन दर्शन में कर्म की चार अवस्थाओं पर महत्त्वपूर्ण बल दिया गया है। ये हैं कर्म का अन्तः प्रवाह - आम्रव कर्म का बन्धन अर्थात् बन्ध कर्म के अन्तः प्रवाह को रोकना - संवर कर्म का विनाश - निर्जरा सभी पर-तन्त्र आत्माएँ कर्म से बँधी हुई हैं। कर्मों की मात्रा एवं लक्षण व्यक्ति के अपने कार्यों पर निर्भर करते हैं । कर्मों के अन्तः प्रवाह (आस्रव) का कारण हिंसा है मेरा विश्वास है कि हिंसा ही पापों के आस्रव (अन्तः प्रवाह) का कारण है और अहिंसा कर्म के संवर का मार्ग है । जैनधर्म में साधु और साध्वियाँ पाँच बड़े व्रत लेते हैं, जिन्हें महाव्रत कहा जाता है। इसी प्रकार सभी साधारण व्यक्ति पाँच छोटे व्रत अर्थात् अणुव्रत तथा सात अन्य व्रत (गुणव्रत, शिक्षाव्रत ) लेते हैं । सिद्धान्ततः महाव्रत एवं अणुव्रत एक समान हैं, पर महाव्रत में अहिंसा पर अधिक बल है । ये पाँच व्रत हैं - अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह | इनमें अहिंसा प्रथम स्थान पर है। यही मूलभूत और अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व्रत है । अहिंसा नाव की तरह संसारसागर पार करने का साधन है । अतः अहिंसा के सिद्धान्त का अर्थ विचार, शब्द और कर्म में शुद्धता लाना है और सार्वभौमिक स्नेह और दया की भावना से प्रेरित होना है । अहिंसा को परिभाषित करने के लिए कई शब्दों का प्रयोग किया जाता है - जैसे कि करुणा, किसी को चोट न पहुँचाना, किसी की हानि न करना, आदि। इनके लिए संस्कृत में करुणा, अनुकम्पा और दया शब्दों का प्रयोग किया जाता है, पर इनमें से कोई भी शब्द अहिंसा के पूरे प्रभाव को व्यक्त या परिभाषित करने में असमर्थ है। अहिंसा केवल सर्वोच्च धर्म और सद्गुण ही नहीं, अपितु एक आध्यात्मिक पुरुष का मूलमन्त्र है । अहिंसा का पालन किए बिना कोई अध्यात्म के मार्ग पर नहीं चल सकता । अहिंसक कौन है ? अहिंसक का जीवन कैसा होता है ? वह जो अहिंसा का पालन करे, (साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका ) अहिंसक कहलाता है। अहिंसक केवल अहिंसा में विश्वास ही नहीं रखता, अपितु वह सक्रिय रूप अहिंसा - एक संक्षिप्त प्रवेशिका :: 391 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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