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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अहिंसा - एक संक्षिप्त प्रवेशिका डॉ. सुलेखचन्द्र जैन अहिंसार्थाय भूतानां धर्मप्रवचनं कृतम् । यः स्यादहिंसा संयुक्तः स धर्म इति निश्चयः ।। अहिंसा और जैनधर्म में सम्बन्ध " जैनियों के लिए अहिंसा एक आम शब्द है, पर बहुत से लोगों के लिए हिंसा एक प्रति-दिन का अनुभव है। तर्क-वितर्क करने या किसी से झगड़ा करने के बारे में वे अधिक नहीं सोचते। उन्होंने सच्चे प्रेम का कभी अनुभव नहीं किया। उनके लिए तर्क-वितर्क करना साधारण बात है। आज की लोलुपता और भौतिकवाद इस हिंसा को बढ़ावा देते हैं । " - डॉ. अतुल शाह, मुख्य सम्पादक, जैन स्पिरिट, लन्दन, इंग्लैंड अहिंसा जैनधर्म की आत्मा और केन्द्रीय धुरी है और इस संसार सागर से पार उतरने का एकमात्र साधन है । मेरी मान्यता है कि अहिंसा और जैनधर्म एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जैनधर्म अहिंसा की नींव पर खड़ा है। यदि जैनधर्म से अहिंसा लुप्त हो जाए, तो जैनधर्म ही लुप्त हो जाएगा। जैन धर्मानुसार वास्तविक धर्म वह है, जो प्राणी - मात्र को जीवित रखता है और परस्पर सद्भाव-पूर्ण सम्बन्ध स्थापित करता है। जैनधर्म का नीतिशास्त्र अपनी सम्पूर्णता में अहिंसा के सिद्धान्त को आचरण में ढालने का सिद्धान्त है । For Private And Personal Use Only प्रश्न : एक जैन, अन्य धर्मानुयायियों से भिन्न कैसे है ? हम कहते हैं कि जैनधर्म का एक प्राचीन समृद्ध इतिहास और संस्कृति है । जैनधर्म और इसके अनुयायियों ने भारत की भाषाओं, कलाओं और संस्कृति के विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया है। जैनधर्म में बहुत से शास्त्र और धार्मिक पुस्तकें हैं, कई सुन्दर मन्दिर हैं और कई बहुत शिक्षित और बुद्धिमान साधु और साध्वियाँ हैं । जैनी अपने आस-पास के समुदायों की शिक्षा, आयुर्विज्ञान के क्षेत्र में तथा सार्वजनिक भलाई के लिए बनाई गयी कई अन्य संस्थाओं में सेवारत हैं। यदि जैनी की किसी एक विशिष्टता को इंगित करना हो, तो वह अहिंसा है, केवल 390 :: जैनधर्म परिचय
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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