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ही है, कुम्हार जीव तो घटकार्य में निमित्त ही है, सहयोगी ही है। ____3. द्रव्यत्व- जिस शक्ति के कारण द्रव्य की अवस्था निरन्तर बदलती रहती है, उसे द्रव्यत्व गुण कहते हैं । इस गुण के कारण द्रव्य परिणामान्तर अर्थात् पर्याय-रूप परिणमन करता है अर्थात् प्रत्येक द्रव्य की अवस्थाएँ निरन्तर बदलती रहती हैं। ___ अवस्था, पर्याय, परिणाम, दशा, हालत, परिणमन, विशेष इत्यादि एकार्थवाची हैं। क्षण-क्षण का बदलाव यही परिणमनशीलता है, किन्तु यह अवस्थाओं पर ही लागू होता है, वस्तु की सत्ता पर नहीं । वस्तु सत्ता रूप से तो सदा अपने-अपने लक्षणों में कायम रहती है, यही उत्पाद-व्यय के साथ की ध्रौव्यता है।
द्रव्यत्व गुण की समझ से यह लाभ है कि अनादि काल से चली आ रही भूल नष्ट हो सकती है और जीव पामर से परमात्मपने को प्राप्त कर सकता है। इस तरह जीव अनन्त काल तक दुःखी रहने को बाध्य नहीं है।
4. प्रमेयत्व-जिस शक्ति के कारण द्रव्य किसी-न-किसी ज्ञान का विषय हो, उसे प्रमेयत्वगुण कहते हैं । इस गुण के सद्भाव से द्रव्य प्रमाण का विषय बनता है। 'प्रमेयस्य भावः प्रमेयत्वम् । प्रमाणेन स्वपरस्वरूपपरिच्छेिद्यं प्रमेयम्।
____ (आलापपद्धति) अर्थात् प्रमेय के भाव को प्रमेयत्व कहते हैं। प्रमाण के द्वारा जो जानने योग्य स्व-परस्वरूप है वह प्रमेय है।
विश्व में विद्यमान सभी वस्तुएँ ज्ञेय कहलाती हैं। उनमें से कोई भी वस्तु छुपी हुई नहीं है। सभी वस्तुएँ किसी-न-किसी ज्ञान की ज्ञेय होती हैं। इस प्रमेयत्व गुण के समझने से अन्तर में विद्यमान चौर्यभाव समाप्त हो जाता है, क्योंकि कोई भी कार्य अज्ञात नहीं रहता। सहज-सरल जीवन-पद्धति ही हमारा कर्तव्य रहता है।
5. अगुरुलघुत्व-'अगुरुलघोर्भावोऽगुरुलघुत्वम् । सूक्ष्मा वागगोचराः प्रतिक्षणं वर्तमानाः आगमप्रमाणादभ्युपगम्या अगुरुलघुगुणाः'।
(आलापपद्धति) । अर्थात् अगुरुलघु भाव अगुरुलघुत्व है अर्थात् जिस गुण के निमित्त से द्रव्य का द्रव्यपना सदा बना रहे अर्थात् द्रव्य का कोई गुण न तो अन्य गुण रूप हो सके और न कोई द्रव्य अन्य द्रव्यरूप हो सके, अथवा न द्रव्य के गुण बिखरकर पृथक्-पृथक् हो सकें और जिसके निमित्त से प्रत्येक द्रव्य में तथा उसके गुणों में समय-समय प्रति षट्गुण हानि-वृद्धि होती रहे, उसे अगुरु लघु-गुण कहते हैं। अगुरु लघु-गुण का यह सूक्ष्म परिणमन वचन के अगोचर है, केवल आगम प्रमाणगम्य है।
अगुरुलघुगुण को समझने से यह ज्ञात होता है कि कोई द्रव्य न तो किसी अन्य से कमतर है और न ही अधिकतर है। सभी द्रव्य अपने-अपने में पूर्णता लिये हुए हैं।
6. प्रदेशत्व- जिस शक्ति के कारण द्रव्य का कोई-न-कोई आकार अवश्य रहता है,
विशेष एवं सामान्य गुण :: 261
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