SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशेष एवं सामान्य गुण राकेश जैन शास्त्री अनादि-निधन विश्व में प्रत्येक द्रव्य अपने-अपने गुणों में विद्यमान रहते हैं । गुण और पर्याय के बिना द्रव्य की सत्ता नहीं है। द्रव्य के अस्तित्व के लिए गुण और पर्याय का होना अनिवार्य है। जैन दार्शनिकों ने गुण को दो प्रकार का माना है-1. सामान्य गुण, 2. विशेष गुण। इन गुणों से ही द्रव्यों की पहचान होती है। गुणों में अर्थात् अपनी ऐसी अनन्त विशेषताओं-सहित जो-कि उस वस्तु का परिचय कराते हैं तथा अन्य वस्तुओं से भिन्नत्व प्रसिद्ध करते हैं। आचार्य देवसेन स्वामी ने आलापपद्धति में कहा है गुण्यते पृथक् क्रियते द्रव्यं द्रव्यान्तराद्यैस्ते गुणाः। अर्थात् जो द्रव्य को द्रव्यान्तरों से पृथक करते है, सो गुण हैं। साहित्यिक दृष्टि से गुण शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता है। जैसे– 'रूपादिगुण' (रूप, रस, गन्ध, स्पर्श आदि गुण) में गुण का अर्थ रूपादि है। दो गुणा यव, त्रिगुणायव' में गुण का अर्थ भाग है, 'गुणज्ञ साधु' में या 'उपकारज्ञ' में उपकार अर्थ है, 'गुणवान् देश' में द्रव्य अर्थ है; क्योंकि जिसमें गौयें या धान्य अच्छा उत्पन्न होता है, वह देश गुणवान कहलाता है। अनेक अर्थों के धनी 'गुण' का प्रकृत प्रकरण में वस्तु में सदा तथा सर्वत्र पायी जाने वाली विशेषताएँ ही हैं। जिनसे वस्तु का वैशिष्ट्य पता चलता है अर्थात् अन्य वस्तुओं के बीच वस्तु का विशिष्ट रूप में परिचय प्राप्त होता है। अभिनव धर्मभूषण यति द्वारा रचित 'न्याय-दीपिका' ग्रन्थ में गुण का लक्षण निम्न रूप से वर्णित है'यावद्द्रव्यभाविनः सकलपर्यायानुवर्तिनो गुणाः वस्तुत्वरूपरसगन्धस्पर्शादयः।' अर्थात् जो सम्पूर्ण द्रव्य में व्याप्तकर रहते हैं और समस्त पर्यायों के साथ रहने वाले हैं, उन्हें गुण कहते हैं और वे वस्तुत्व, रूप, रस, गन्ध, स्पर्शादि हैं। जैसे पुद्गल द्रव्य में सदा, सर्वत्र स्पर्श, रस, गन्ध, वर्णादि गुण पाये जाते हैं, वैसे ही विशेष एवं सामान्य गुण :: 259 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy