SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खत्तराध्ययन सूत्रम् पालन करवा समर्थ धइश नहीं ३५ जावजीवमविस्सामो । गुणाणं तुह महाभरो !गुरूओ लोहमारूव । जो पुत्ता होइ दुवहो ॥३॥ भाषांतर हे पुत्र ! जे गुणोनो महोटो भार हे ते लोढाना भार जेवो अति गुरुक-बोजारूप होड अत्यन्त दुषह-वहन करबो कठिन के, तेमांधी अध्य०१९ बावजीव-जीवतां सूचीमा विसामो मळे तेम नधी. ३६ 12॥११२८॥ व्या-हे पुत्र ! यो गुणानां चारित्रस्य मृलोत्तरगुणानां महाभारः स लोहमार इव गुरुर्गरिष्टो दुर्वहो भवति. कीशो गुणानां महाभारः ? यावजीवमविश्रामो विश्रामरहितः. अन्योऽपि गुरुभारो यदा वोढुं न शक्यते, तदा कचित्प्रदेशे विमुच्य विश्रामो गृद्यते, परमेवं चारित्रगुणभारः कदापि न मोचनीयो यावजीवं धारणोयोऽस्ति ३३ &ा हे पुत्र ! जे गुणो एटले चारित्रना मूलगुणो तथा उत्तरगुणो कह्या छे तेनो महोटो भार लोढाना भारा जेबो गुरुक-बहु बोजादार होइने उठाययो अति कठिन छे, केमके ते यावज्जीव-जीवित पर्यंत विश्राम रहित उठावानो के. महोटो भार क्यांक उतारी विसामो लेनाय, पण आ चारित्र भार तो जीवितपर्यंत धरी राखबानो. ३६ आगासे गंगसोउच्च । पडिसोउम दुत्तरो। बाहाहिं सागरो चेव । तरिअब्बो गुणोदही ॥३॥ आकाशमां जेवो गंगास्रोत दुस्तर तथा जेम अन्य नदीमा प्रतिस्रोत-सामे पूरे तरयु जेम दुष्कर के भने बाहुबडे सागर तरी जबो। माजेवो कर तेवो था गुणोना उदधिरूप साधुधर्म तरबो अति दुष्कर के. ३. व्या०-हे पुत्र! आकाशे गंगायाः श्रोतोवद्दुस्तरमिति योज्यं. यथा हिमाचलास्पतद्गंगापवाहस्तरितुमशक्य For Private and Personal Use Only
SR No.020858
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy