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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपराभ्यबन बत्रम ॥१२४५ भाषांतर अध्य०२१ ॥१२४५० कृतवान्, नेमिस्तु मौनमालंब्य स्थितः. कृष्णेन चिंतितमनिषिद्धमनुमतमिति न्यायादंगीकृत गव नेमिना विवाह इति दशारचक्रायोक्तवान्. संजातहर्षेण दशारचक्रेण भणितः कृष्णस्त्वमेव नेम्यानुरूपां कन्यां गवेषयः ततः कृष्णन गवेषयतोग्रसेनपुत्री राजीमती कन्या नेमितुल्यरूपाता. सा पुनर्धनवतीजीवोऽपराजितविमानाच्छ्युत्वा तत्रोत्पन्नास्तीति. इयमेव नेम्यनुरूपेति तदर्थ कृष्णेनोग्रसेनः प्रार्थिता, तेनापि मनोरथातीतोऽयमनुग्रह इति भणित्वा कन्या दत्ता. | अर्थः-नेमिनो आ अभिप्राय ते स्वीओए कृष्णने जणान्यो त्यार कृष्ण पोते नेमि पासे जइने बोल्या के-ऋषमादिक तीर्थकरो हास्त्रीओ परणी संतान परंपरा वधारीने तेमज पोताना इष्टजनोना मनोरथ पूर्ण करीने उत्तर अवस्थामा प्रजित थया अने शिव-मोक्ष पाम्या तेम तमे पण ते ओनी बराबर ची त्यांज मोक्षे जब शकशो तो पछी आ दशारचक्रना संतोष माटे शा माटे पाणिग्रहण नथी करता ? आवी रीते विवाह माटे कृष्णे आग्रह कयों, ते नेमि तो मौन धारण करी सांभळी रहा. कृष्णे विचार्य के-निषेध न कों तेथी नेमि संमत थया-आम धारीने दशारचक्रने का के नेमिए परणवानुं स्वीकार्यु माटे कन्या गोतो. दशारचक्रे कृष्णने कार्य के तमेज नेमिने लायक कोइ कन्या शोधी लाचो. कृष्णे तो उग्रसेननी पुत्री राजीमतीनं मागु कयु. उग्रसेन राजाए पोतानो मनोरथ सिद्ध थयो मानी घणी प्रसन्नताथी 'आ तो मारो अनुग्रह थयो' आम कही पोतानी राजीमती कन्या के जे धनवती जीव विमान| मांथी व्यवीने अवतरेल के ते नेमिने आपी. ॥ ततः कारितं कुलदयेऽपि वर्धापन, गृहीतं विवाइलनं, कारितः समस्तजातिवर्गस्य भोजनाच्छादनाविसत्कारः, ROSCORGARH For Private and Personal Use Only
SR No.020858
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size7 MB
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