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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपराध्य पन स्त्रम् १२१४॥ पोताना परिजनोथी पण सहित एटले नोकर चाकर वगेरे सहित तथा बांधन-माइ भांडरु आदि सहित. प्रथम पण वनवाटिका बगीचामां पोताना सर्व अंतपुर परिजन बांधव कुटुंब सहितज क्रीडार्थ आग्यो हतो एटले मुनिना वाक्य श्रवणथी सर्व परिवारयुक्त भापनि धर्मानुरक्त-धर्ममां प्रीतिमान् थयो. ॥ ५८ ॥ बम०२० ॥१२१४॥ उस्ससियरोमकूवो । काऊण य पाहिणं ॥ अभिवदिऊण सिरसा । अझ्याओ नराहिवो ॥ ५९॥ उसित के रोमरूप जेना एवो ए नराधिप, ५ मुनिने प्रदक्षिणा करीने तथा मन्तकधी अभिवंदन कीने चालता थथा. ५९ ब्या०-नराधिपः श्रेणिकोऽतियातो गृहं गतः किं कृत्वा ? शिरसा मस्तकेनाभिवंद्य मुनि नमस्कृत्य, पुन: किं कृत्वा ? प्रदक्षिणां कृत्वा प्रदक्षिणां दत्वा. कथंभूतो नराधिपः ? 'उस्ससियरोमकूवों' उच्छ्वसितरोमकूपः, साधोदर्शनाद्वाक्यश्रवणादुल्लसितरोमकूपः । ५९ ॥ नराधिप श्रेणिक राजा अतियात-पोताना राजगृह भणी गया. केम करीने ? मस्तक वडे अभिवंदन करीने अर्थात् मुनिना चरणमा मस्तक नमावी नमस्कार करीने तथा प्रदक्षिणा करीने. नराधिप केवा थया हता? ए महात्माना दर्शनधी तथा तेमना वाक्योना श्रवणथी उल्लसित रोमरूप-सकळ गात्रमा रोमांच जेने उद्भवेल के एवा. ॥ ५९॥ इयरोवि गुणममिद्धो । तिगुत्तिगुत्तो तिदंडविरओ य॥ विहंग इव विप्पमुको। विहरइ वसुहं विगयमोहोत्तिबेमि।६०४ | इतर महात्मा साधु-पण मुनिना गुणोधी संयुक्त तथा विगुप्तिगुप्त अने वि विरत होह पक्षीनी पेठे विषमुक्त धयेका विगतमोह थाने वसुधा उपर विहरवा लाम्या 'एम हु कहुं छु' ६. RRCHIMBORESC-SA For Private and Personal Use Only
SR No.020858
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size7 MB
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