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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir उचराध्य ॥१२१३॥ RASAC __हे महर्षे ! में तमने पूछीने एटले 'आ श्रामण्य तमे केम लीधुं ?, इत्यादिक प्रश्नो करीने तमारा ध्यानमा जे विघ्न को तेमज में आपने भोग करवा निमंत्रित कर्या, अर्थात्-'हे स्वामिन् भोगोने भोगवो' इत्यादि प्रार्थना करी ते सर्व मारा अपराध आपे धमाल | करवा योग्य छे, तो मारा ए सर्वे अपराधने आप क्षमा करशो. ॥ ५७ ।। एवं थुणित्ताण स रायसीहो। अणगारसीहं परमाइ भत्तीए ॥ सओरोहो सपरिअणो संबंधबो। धम्माणुरत्तो विमलेण चेपसा ॥ ५८ ॥ आवी रीते ते राजालोमा सिंहसमो श्रेणिक, अनगार-साधुओमा सिंहतुल्य ए मुनीनी परमभक्ति बड़े स्तुति करीने पोताना अवरोध जनाना सहित तथा परिजन बने बांधवोए सहित निर्मल चित्तधी धर्ममा अनुरक्त थयो, ५८ व्या०-स राजसु सिंहो राजसिंहः श्रेणिको राजा एवममुना प्रकारेण तमनगारसिंह मुनिसिंह परमयोत्कृ8.टया भक्त्या स्तुत्वा विमलेन निर्मलेन चेतसा धर्मानुरक्तोऽभूदिति शेषः, कीरशः श्रेणिका ? सावरोधोंत:पुरेण ६ सहितः, पुनः कीदृशः सपरिजनः सह परिजनैर्वर्तत इति मपरिजनो भृत्यादिवर्गसहितः पुनः कीदृशः १ स बांधवः सह बांधवैर्धातृप्रमुखैर्वर्तत इति सांधवः. पुरापि बनवाटिकायां सर्वातःपुरपरिजनबांधवकुटुंबसहित एव क्रीडां कर्तुमागात्, ततो मुनेर्वाक्यश्रवणात् सर्वपरिकरयुक्तो धर्मानुरक्तोऽभूदित्यर्थः ॥२८॥ ते राजाओमां सिंह जेवो राजसिंह श्रेणिक राजा आ प्रकारे ते अनगारसिंह साधुअोमा सिंहसमा मुनिने परम-उत्कृष्ट भक्ति बडे स्तुति करीने विमल=निर्मल चित्तथी धर्मानुरक्त थयो (एटलं शे लेवानुं ) केवो श्रेणिक ? सावरोध-अंतापुर सहित नेपाल SCHEES For Private and Personal Use Only
SR No.020858
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size7 MB
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