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al.
भाषांतर अध्य०१३ ॥८९३॥
उत्तराध्य
पूर्ववत्. 'निग्गंथस्स खलु इत्थीहिं०' निग्रंथस्य खलु स्त्रीभिः सार्ध निषिद्यां गतस्य प्राप्तस्य विहरमाणस्य नत्र स्थितस्य
ब्रह्मचारिणो ब्रह्मचर्ये शंकादयो दोषा उत्पद्यते. तस्मात्कारणात्खलु निश्चयेन निग्रंथः स्त्रीभिः सहैकत्रासने गतः प्रात: यन सूत्रम्
मन्नो विहरेनोपविशेत.॥३॥ इति तृतीयं ब्रह्मचर्य यानं, एषा तृतीया वाटिका. ॥८९३॥
व्याख्या-निग्रंथ ते होय के जे स्वीयोनी साथे निषिद्या एटले जेना उपर लोको बेसे ते, अर्थात् पाट, बाजोठ, पाटलो अथवा चार पायावाळु कंइ आसन; ते निषिद्या उपर बेसीने विहरनार न थाय. शो अर्थ कह्यो ? जे स्त्रीयोनी माथे एकज आसन उपर न बेसे ते निग्रंथ कहेवाय अहीं एवो संप्रदाय छे के जे आसन उपर पहेलां स्त्री बेठी होय ते आसन उपरथी ते स्त्री ऊठी गया बाद एक मुहूर्त बेघडी चीत्या पछी ते आसन साधुने बेसवा योग्य थाय. 'एम केम ?' आवी कदाच शिष्य शंका करे एम मानी आचार्य कड़े छे. (आ बेय पदोनो अर्थ पूर्ववत् समजी लेवो,) स्त्रीयोनी साथे निषिद्या उपर जइ विहरता निग्रंथ साधुने निश्चय त्यां स्थित थयेला ब्रह्मचारीने पण ब्रह्मचर्यमा शंका आदिक दोषो उत्पन्न थाय. ते कारणथी निश्चयें निग्रंथ स्त्रीयोनी साथे एकत्र आसनगत थइने न विहरवून बेसबुं. ३ आ तृतीय ब्रह्मचर्य स्थान का; आ तृतीया वाटिका.
नो निग्गंथे इत्थीणं इंदियाई मणोहराई मणोरमाई आलोइत्ता निज्झाइत्ता हवइ, से निग्गंथे तं कहमिति चेत् JE आयरिय आह-निग्गंथस्त खलु इत्थीणं इंदियाई मगोहराई मगोरमाई आलोएमाणस निज्झाय मागस बंभयाJE रिस्स बंभचेरे संका वा कंखा वा वितिगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेयं वा लभेजा, उम्मायं वा पाउगिजा, दीहकाall लीयं वा रोगायक हविज्जा, केवलिपण्णत्ताओ धम्माभो भंसिजा, तम्हा खलु नो निग्गंथे इत्थी गं इंदियाई मणोह
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