SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्चराध्य यन मूत्रम् भाषांतर अध्य०१८ ॥१०५५॥ विलासिनीभिः पोषितनेत्ररसो गजेन्द्रारूढो दशार्णभद्रभूपतिर्भगवतो वन्दनार्थमायातः. दशार्ण देशमा जइ शेरडोना वाडमां खेडुने त्या काम करवा रह्यो. दश गधाणा सुवर्ण कमाणो त्यारे तेने थोडुं छे एम तो लाग्युं तेथी घर तरफ न वळतां आम तेम भमतो एकदा अरण्यमा पेठो त्यां एक पीपळाना झाडतळे विसामो लेवा वेठो त्यां घोडाना खेचाणथी दशार्णभद्र राजा आची चड्या. आ मदहरने जोइ राजाए पूछ्यु के-'तुं कोण छो अने क्याथी आवे छे ? जवावमा आ मदहरे पोतानो सघळो वृत्तांत कही संभळाव्यो ते सांभळी राजा समजी गया के आने खीए छेतों छे तेथी बीचाडो आ परदेशमां भटके छे. राजाए तेने स्त्रीचरित्र संभळावी पोताना राजमां तेने लइ जइने तेना खावा पीचा बगेरेनी योजना करावी पोता पासे राख्यो. राजाए चिंतन कर्यु के-अदृष्ट देवमां आवी भक्ति करे छे अने में तो सत्यदेव महावीर विद्यमान छे तेनी भक्ति पण नथी कराती. आम राजा ज्यां चिंतन करी रह्या छे तेटलामा एक प्रतीहारे राजा आगळ आवीने खबर कह्या के-'भगवान श्रीमहाहावीर पधार्या.' राजासांभळीने घणो संतोष पाम्यो अने मनमां चिंतन करवा लाग्यो के-आ मदहर विवेक बुद्धिहीन होवा छतां पण पोताना देवनी पूजा संपादन करवा आटलो कष्ट उठावे छे तो पछी सार असारनो विवेक करवामां विचक्षण एवो हुँ तेणे तो समग्र सामग्रीवडे त्रिभुवन चित्तामणि समान श्रीमहावीरनी विशेषे करी पूजा करवी जोइये; तेथी काले हुं मारी सर्व समृद्धिथी श्रीमहावीरनी एची वंदना करूं के जेवी आज दिवस सुधीमा कोइए पण करी न होय; पछी बीजे दिवसे सवारमा प्रातःकृत्य करी नाही धोइ आखे शरीरे चंदनादि विलेपन करी प्रकट रूप लावण्य तथा वेश रचनायुक्त बनी सर्व अंग उपांगा अलंकार धारण | करी चतुरंगिणी सेना सहित घणा मंत्रिसामंतादिकने साथे लइ तेमज नगरना शेठीया तथा वेपारीओथी परिचारित अने आगळ For Private and Personal Use Only
SR No.020857
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy